संस्मरण-"होली का हुड़दंग"
आज जमाना बदल गया है। हम पहले से ज्यादा सभ्य और शिक्षित हो गए है। पर इसकी कीमत भी हमे चुकानी पड़ी है। आज सब कुछ रहते हुए भी हम अकेले हैं।...
संस्मरण-"होली का हुड़दंग"
संस्मरण - भई गती साँप छुछुन्दर की
" एक लगोंट सात भाई .."
संस्मरण " पोस्टकार्ड "
संस्मरण " आलू-चोर "
संस्मरण " धन्य होती है माँ "
संस्मरण.... मेरी पहली रैगिंग
आधी आबादी से भेद-भाव आखिर कब तक ?
# जब हमने जम्मू में तिरंगा फहराया #
# जब हम लोग पिटाई से बचे #
जब मैं नदी में डूबने से बचा।
बॉस की बारात
गाँव... प्यारा गाँव....
चरकू साहब
संस्मरण
संस्मरण -- किस्मत या संयोग