इसे मानव मन की कमजोरी कहें या कुछ और पर अक्सर ही ऐसा होता है कि हम अपने बारे में औरों को कुछ बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं। हम सोंचते हैं कि यदि हम अपने आप को बढ़ा चढ़ा कर बताएंगे तो दूसरे इंसान के मन में हमारे लिए आदर पैदा होगा। पर सच्चाई यह है कि आदर तो पैदा नहीं होता, हाँ, उसके बदले ईर्ष्या जरूर पैदा होता है। इन्ही विचारों पर आधारित एक छोटी सी कहानी प्रस्तुत है जो गौतम बुद्ध के जीवन से सम्बंधित है।ये कहानी आपको बतायेगी कि किस तरह से आप अपने आप को अपनी नजरों में ऊपर उठा सकते हैं। जब तक आप अपनी नजरों में ऊपर नहीं उठेंगे तब तक आप दुनिया की नजरों में भी ऊपर नहीं उठ सकते।
एक बार गौतम बुद्ध नदी के पास में गुजर रहे होते हैं। सुबह सुबह का समय होता है। बुद्ध कुछ दूर चलने के बाद एक वृक्ष के नीचे बैठ जाते हैं। पुराने समय में लोग स्नान करने के लिए नदी पर जाया करते थे इसलिए एक व्यक्ति नहाने के लिए नदी किनारे पर पहुँचता है। जैसे ही वह व्यक्ति नदी किनारे पर पहुँचता है, वह देखता है कि किसी व्यक्ति के पद चिन्ह नदी के पास से होते हुए जंगल की ओर जा रहे हैं। उस व्यक्ति का पेशा ज्योतिषी करना होता है। वह कोई आम ज्योतिषी नहीं होता बल्कि एक पहुँचा हुआ ज्योतिषी होता है। यह खूबी उस समय कुछ ही ज्योतिषियों में हुआ करती थी। वह पैरों के चिन्हों को देखकर ही किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व बता सकता था। वह बुद्ध के पैरों के चिन्हों को देखता है और उलझन में पड़ जाता है। वह देखता है कि पदचिन्ह बताते हैं कि यह किसी सम्राट के पद चिन्ह हैं। वह सोचता है कि इतनी सुबह कोई सम्राट यहाँ से क्यों गुजरेगा ? सम्राट का अर्थ होता है राजाओं का भी राजा। जिज्ञासाबस वह उन पद चिन्हों के पीछे पीछे चलता है और जंगल में पहुँचता है। जैसे ही वह व्यक्ति जंगल में कुछ और आगे चलता है उसे एक व्यक्ति बैठा नजर आता है। वह व्यक्ति और कोई नहीं गौतम बुद्ध होते हैं।
वह ज्योतिषी बुद्ध को देखकर बहुत ज्यादा आश्चर्य-चकित होता है। वह मन ही मन सोचता है या तो कोई मेरे साथ मजाक कर रहा है या मेरी ज्योतिष विद्या पूरी तरह से गलत हो गई है। क्योंकि अभी अभी मैंने देखा कि यह पद चिन्ह तो एक सम्राट के हैं और यहाँ मैं देख रहा हूं कि एक भिक्षु बैठा है। यह कैसे संभव है ? वह बुद्ध से पूछता है - आप कौन हैं ?
बुद्ध उत्तर देते हैं- मैं कोई नहीं हूँ। वह व्यक्ति बुध से कहता है कि बड़ी आश्चर्यचकित करने वाली बात है। आपके पद चिन्ह यह बता रहे हैं कि आप सम्राट हैं। और आप भिक्षु के रूप में यहाँ बैठे हैं। आपको तो दुनिया पर राज करना चाहिए। आप कहाँ अपना समय बर्बाद कर रहे हैं ?
इस पर बुद्ध कहते हैं वह तो मैं करूँगा परंतु उस तरह से नहीं जैसा तुम सोचते हो। उस व्यक्ति को उत्तर देने के बुद्ध के पास दो तरीके थे। बुद्ध कह सकते थे कि यह पेड़-पौधे, ये नदियाँ, यह पहाड़, सब कुछ मैं ही तो हूँ। परंतु बुद्ध ने ऐसा नहीं कहा। बुद्ध ने कहा- मैं कुछ नहीं हूँ।
यदि बुद्ध कहते कि मैं ब्रह्मांड हूँ। मुझसे परे कुछ भी नहीं है तो क्या होता ? वहाँ पर एक बहस शुरू हो जाती, जिसका कोई अंत न होता। हम भी अक्सर यही करते हैं। कोई हमसे कुछ पूछता है तो हम उसे अपने बारे में बढ़ा चढ़ाकर बताते हैं। हम सोचते हैं कि जितना बड़ा हम उसे बताएँगे उतना ही बड़ा नजरिया सामने वाले व्यक्ति का हमारे लिए होगा।
इस तरह हम पाते हैं कि बुद्ध ने एक छोटी सी घटना से हम सभी लोगों को एक सिख देने का प्रयास किया है। एक सवाल हमारे मन मे उठ सकता है कि बुद्ध तो आत्मज्ञानी थे, तो बुद्ध ने उसे क्यों नहीं बताया कि मैं एक आत्मज्ञानी हूँ। मैं सब कुछ जानता हूँ। मैं हर किसी के दुख दूर कर सकता हूँ। बुद्ध ने उस व्यक्ति से यह सब क्यों नहीं कहा ? इसके पीछे एक कारण था। बुद्ध जानते थे कि जो मैं हूँ वह तो इस व्यक्ति को पता चल ही जाएगा। उसे बताने का क्या फायदा है ? पर जो बताने योग्य है वह तो मुझे इसे बताना चाहिए। अंत मे मैं यह कहना चाहता हूँ कि अगर आप यह मानते हैं कि आप एक अच्छा इंसान हैं तो आपको इतना तक बताने की जरूरत नहीं है कि आप एक अच्छे इंसान हैं। क्योंकि अगर आप हैं तो दिखेगा, खुद ही दिखेगा । और जो खुद दिखता है वही तारीफ के काबिल होता है। और जो जानबूझ कर दिखाया जाता है उसे लोग अनदेखा ही करते हैं।
किशोरी रमण
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Very nice story....
वाह, सही और सटीक कहानी ।दिखावा से बचना चाहिए।