
जब मैं अपने दोस्तों से बात करता हूँ तो उनकी बातों से इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि आज के समय में विरले ही कोई अपनी जिंदगी और अपनी वर्तमान स्थिति से खुश है। और जब कोई व्यक्ति खुश नहीं होगा तो भला उसे संतुष्टि कहां से मिलेगी ? आश्चर्य तो इस बात का होता है कि ऐसे लोग भी जिन्हें हम जीवन में सफल और सुखी इंसान मानते हैं वो भी असंतुष्ट ही नजर आते हैं। हम अपनी तुलना उनसे करके जीवन में दुखी और असंतुष्ट होते हैं जबकि हमारी नजर में वह सफल व्यक्ति भी अपनी तुलना किसी और बड़े और सफल व्यक्ति से करके दुखी और असंतुष्ट रहता है।
तो इसका मतलब तो यह हुआ कि हमारे दुखों का कारण बाहर का कोई कारक नहीं है बल्कि हमारे अंदर का कारक है। किसी ने बहुत सही कहा है कि हम इंसान बहुत ही माहिर हैं हर चीज में दुख निकाल लेने में। बस इसके लिए अपने चश्मे को उल्टा घुमाना भर होता है। और फिर तो सकारात्मकता, नकारात्मकता में बदल जाती है और हमें सुख भी दुख दिखलाई पड़ने लगता हैं।
हमारे ज्यादातर दुख तो हमारे खुद के पैदा किये होते हैं यानी हमारे क्रिएशन ही होते हैं। कई बार तो यह मात्र आभासी ही होता है। अगर-मगर पर आधारित। अगर ऐसा होता तो यह होता। अगर वैसा होगा तो क्या होगा ?
हम या तो अपने भूतकाल में जीते हैं और अपने बीते दिनों को याद कर दुखी होते रहते हैं। या फिर भविष्य की चिंता में अपने मन और अपने तन को कष्ट देते हैं। हम कभी भी वर्तमान में नहीं जीते हैं और न ही उसे सुखी और आनंदमय बनाने का प्रयास करते हैं। जो हो चुका है या जो होने वाला है, बस वही सब हम पर हावी रहता है। आदमी की जरूरतें तो काफी सीमित है पर हम भविष्य की सोच सोच कर इसे असीमित बना देते हैं और फिर उसे पाने के लिए बहुत सारे दुख दर्द मोल लेते हैं।
हम अक्सर ही अपने बचपन को याद कर कहते हैं कि वे भी क्या मस्ती भरे दिन थे जब कोई चिंता फिक्र नहीं थी। प्रकृति के साथ ऑंख-मिचौली करते हुए ज्यो ज्यो हम बड़े होते गये हमारी सुख की मात्रा छोटी होती गई। हमारे माथे पर चिंता की लकीरें बड़ी होती गई। दुख बढ़ता गया। आखिर क्यों हुआ ऐसा ? कभी सोचा है हमने ? बचपन में जो जीवन सुखद था वही बड़े होने पर अचानक दुखद कैसे बन गया ? वही परिवार, वही लोग वही परिस्थितियां, फिर क्या बदल गया ? जो हम दुखी हो गये।
यहाँ मैं एक मजेदार वाकया सुनाना चाहता हूँ। एक आदमी बहुत ही उदास था। उसके दोस्त अपने हमेशा हँसतें बोलते रहने वाले दोस्त को उदास देख कर चिंतित हो उठे। फिर सोचा, शायद किसी बात पर उसका मूड खराब हो गया है, चलो कुछ देर के बाद अपने आप ही ठीक हो जाएगा। लेकिन बहुत देर बाद भी जब वह ऐसे ही उदास और चिंतित बैठा रहा तब उसके दोस्त को चिन्ता हुई। दोस्त ने उसकी उदासी का कारण पूछा। पूछा -तुम्हारी तबीयत खराब तो नहीं है ? उसने बोला -नहीं । दोस्त ने पूछा - तुम्हारे घर में तो सब ठीक है न ? दोस्त ने कहा, हाँ सब ठीक है। क्या कारोबार में कुछ नुक्सान हो गया है ? तो दोस्त बोला- नहीं ,ऐसी तो कोई बात नहीं हुई है। अब खीजते हुए उसके दोस्त ने पूछा - अबे, तो तुम उदास और चिंतित क्यों हो ? इसपर दोस्त ने बताया कि आज जब वह सुबह अखबार पढ़ रहा था तो राशिफल वाले कॉलम में उसने पढ़ा जिसमे लिखा हुआ था कि आज के दिन मैं उदास रहूँगा। उसे ही सोच सोच कर मैं चिंतित और उदास हूँ कि कहीं मेरे साथ कुछ बुरा तो नही होने वाला है।
हमारे ज्ञानी लोग सही कहते हैं कि हमेशा अपने वर्तमान में जीयो। जो भी मिला है उसके लिए भगवान को धन्यवाद दो । प्रार्थना करो पर प्रार्थना में कोई माँग न हो।बस आपके दोनो हाँथ जुड़े हो, सृष्टि और प्रकृति के लिए शुक्रिया में। तब तुम्हारा जीवन खुद-ब-खुद आनंद से भर जाएगा। फिर तो तुम्हें न तो किसी तीर्थ यात्रा पर जाने की जरूरत होगी और ना ही भगवान को खोजने की। तुम्हारी खुद की आत्मा ही परमात्मा के रूप में प्रकाशित नजर आएगी। सब कुछ अद्भुत और सुख से भरपूर होगा।
किशोरी रमण
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सुन्दर पोस्ट
Very nice....