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  • Writer's pictureKishori Raman

# अहंकार पर विजय #


अहंकार ब्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु होता है। जिसका अहंकार जितना बड़ा होता है उसकी पीड़ा और असंतोष भी उतना ही बड़ा होता है, क्योंकि उसे अपनी कमी नजर नही आती है फलस्वरूप वह अपने मे आवश्यक सुधार नही कर पाता है। लेकिन ज्यो ही अपने अहंकार पर वह विजय प्राप्त करता है उसे शान्ति और संतोष खुद व खुद प्राप्त होता है औऱ वह सन्त बन जाता है। इस सम्बंध में तथागत बुद्ध और एक राजा की कथा प्रस्तुत है। एक बार एक राजा बुद्ध के आश्रम में आया। आश्रम में बहुत भीड़ थी। राजा ने बुद्ध से आग्रह किया कि वह एकांत में उनसे बात करना चाहता है। बुद्ध बोले कि यहाँ तो सर्वत्र एकांत ही एकांत है। अतः जो बोलना है यही बोलो। तब राजा ने कहा कि मैं संन्यास लेना चाहता हूं। यह सुनकर बुद्ध थोड़ा गंभीर हो गए। फिर वो बोले कि तुम्हें सन्यस्त होने के लिए दीक्षा देंगे पर इससे पहले तुम्हें मेरी एक शर्त का पालन करना होगा। राजा ने आश्वस्त करते हुए कहा कि जब दीक्षा लेनी ही है और सन्यस्त होना ही है तो मुझे सब शर्तें मंजूर है। बुद्ध ने उसे आदेश दिया कि अपने कपड़े उतारो, जूते उतारो और नग्न हो जाओ और अपनी राजधानी के राजमार्गों पर स्वयं को जूते मारते हुए चक्कर लगाकर आओ। राजा ने एक पल सोंचा फिर उसने अपने कपड़े उतारे। अपने जूते को उतार कर अपने हाँथो में लिया और ख़ुद को जूते मारते हुए राजधानी की सड़कों पर दौड़ने लगा। उसके चले जाने पर बुद्ध के शिष्यों ने बुद्ध से कहा, जब हम लोग दीक्षा लेने के लिए यहाँ आये थे तो आपने ऐसी कठोर शर्त हमारे साथ नही लगाई थी। फिर आज इतनी कठोर शर्त क्यो लगाई ? वह भी राजा के साथ ? आप तो स्वयं करुणावतार हैं, अतः आपका ऐसा कठोर व्यवहार वह भी एक राजा के साथ हमे समझ नही आया। बुद्ध पहले तो मुस्कुराये फिर बोले। तुमलोगों और राजा में क्या अंतर है यह समझने का प्रयास करो। जब अंतर समझ जाओगे तो कठोर शर्त का कारण भी समझ जाओगे। इस पर शिष्य- गण खामोश ही रहे तब बुद्ध ने कहा , जब तुम लोग सन्यास लेने आए थे तो तुम्हारे अहंकार बहुत बड़े नहीं थे इसलिए तुम सबो से भिक्षा मंगवा कर ही काम बन गया था। पर यह तो राजा है और इसका अहंकार भी बहुत बड़ा है। चुकि इसका अहंकार बहुत बड़ा है इसलिए इसकी दवाई भी अधिक शक्तिशाली होनी चाहिए। राजा जब इस दशा में अपने ही प्रजा-जनों के सामने से गुजरेगा तो उसका अहंकार चूर-चूर हो जाएगा। एक बार अहंकार के चँगुल से निकल जाने के बाद उसे दुनिया और जिन्दगी का सही रूप देखाई पड़ जायेगा। राजा ने एक बार जो राज-मार्गो पर नग्न दौड़ना शुरू किया तो अपने को जूते मारते हुए बस दौड़ता ही रहा। शाम तक उसने सारे राज-मार्गो के चक्कर लगा लिए। फिर वह बुद्ध के पास लौट आयाऔर उनके चरणों में आकर बैठ गया । फिर बोला अब तो मुझे दीक्षा दें। मुझे दीक्षा देकर अब तो मुझे सन्यस्त करे। बुद्ध बोले - अवश्य। फिर उन्होंने राजा के सर पर मुकुट रखा और कहा। तुमने अपने अहंकार पर विजय पा ली है। अब तुम्हें सन्यास लेने की जरूरत नहीं है। जाओ और स्वामी भाव छोड़कर सेवक भाव से राज्य करो। अब से तुम राजा नहीं रहे बल्कि राजर्षि हो चुके हो। किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow, share and comments. Please follow the blog on social media. link are on contact us page. www.merirachnaye.com




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