जीवन में बहुत बार हमें बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। समस्याओं के पीछे बहुत सारे अलग-अलग कारण हो सकते हैं पर कई बार हम अपने अहंकार के कारण ही दुख पाते हैं। हम इतनी छोटी सी बात समझ नहीं पाते हैं की अहंकार और कुछ नहीं सिर्फ हमारी सोंच है यानी अपने को वह समझना जो असल मे हम हैं नही। जो लोग अहंकार को अपनी सोंच से कुछ ज्यादा मानते हैं उन्हें कुछ ज्यादा ही कष्ट उठाना पड़ता है। इस संदर्भ में गौतम बुद्ध के जीवन की एक छोटी सी घटना प्रस्तुत है जो आपको अपने अहंकार से छुटकारा पाने में मदद कर सकता है।
एक बार गौतम बुद्ध और उनके कुछ शिष्य-गण एक जंगल से गुजर रहे होते हैं। चलते चलते अचानक से बुद्ध एक जगह पर रुक जाते हैं। उनके साथ ही उनके सभी शिष्य भी रुक जाते हैं । उनके शिष्य-गण यह देखकर आश्चर्यचकित होते हैं कि बुद्ध बिना कुछ बोले अपने सामने खड़े एक बृक्ष को हाथ जोड़कर नमन करते हैं। उनके सभी शिष्य यह जानने को उत्सुक होते हैं कि गौतम बुद्ध दोनों हाथ जोड़कर बृक्ष को नमन क्यों कर रहे हैं ?
अपने शिष्य का प्रश्न सुन बुद्ध शिष्य से पूछते हैं - क्या इस बृक्ष को हाथ जोड़कर नमन करने से कोई अनहोनी हो गई ?
इस पर शिष्य कहता है- नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं पर यह देखकर आश्चर्य हुआ कि आप जैसा महान व्यक्ति जिसे देखकर बड़े से बड़े राजा भी हाथ जोड़कर नमन करते हैं वह इस साधारण से बृक्ष को हाथ जोड़ नमन क्यों कर रहें है ? यह बृक्ष न तोआपकी बात का जवाब दे सकता है और न ही आपके नमन करने पर प्रसन्नता व्यक्त कर सकता है।
अपने शिष्य की बात सुनकर बुद्ध पहले तो मुस्कुराते हैं फिर उत्तर देते हैं - बृक्ष कुछ बोल कर भले ही मुझे जवाब न दे सकते हो किंतु जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के शरीर की एक भाषा होती है उसी प्रकार ये बृक्ष भी अपनी भाषा में हमारे प्रश्नों के उत्तर देते हैं। और रही बात मेरी महानता की तो यह न तो मेरे हाथ जोड़ने से और न तो मेरे सर झुकाने से कम हो सकती है। और न ही ये मेरे हाथ नही जोड़ने से और सर नही झुकाने से बढ़ सकती है। इस वृक्ष के नीचे बैठकर मैंने कई दिनों तक तपस्या की है और इस बृक्ष ने एक माँ की तरह मुझे प्रेम दिया है। इसकी छाया में बैठकर मैं तपती धूप से बचा हूँ। इसलिए इसके प्रति मेरे हृदय में सदैव प्रेम और आभार रहेगा।
हम अपने अहंकार के कारण सामने वाले को अपने से छोटा या बड़ा बनाते हैं जबकि वास्तविकता सिर्फ इतनी है कि जो जीवन तुम्हारे और मेरे भीतर हैं वही जीवन इन सभी वृक्षों और सभी जानवरों के भीतर भी है। अहंकार मनुष्य को अंधा कर देता है जिसके कारण वह वास्तविकता को देख ही नहीं पाता। जब हम हाथ जोड़ कर शीश नवाते हैं तो यह सिर्फ सामने वाले व्यक्ति को आदर देने की बात नहीं है। इसका अर्थ है कि हमारे भीतर का परम सत्य सामने वाले व्यक्ति के भीतर के परम सत्य को पहचान रहा है। इसलिए हम एक दूसरे को हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं।
अब सभी शिष्य-गण बुद्ध से पूछते हैं कि हमारे भीतर अहंकार पैदा कैसे होता है ? बुद्ध कहते हैं--जैसे जैसे हम चीजों को अपने साथ जोड़ते जाते हैं वैसे वैसे हमारे भीतर अहंकार बढ़ने लगता है, जबकि वास्तविकता तो यह है कि हम चाह कर भी किसी चीज को अपने आप से नहीं जोड़ सकते। बस यह भ्रम पाल सकते हैं कि यह चीज मेरी है, और इसी भ्रम के कारण अहंकार पैदा होता है। अगर व्यक्ति इस चीज को देख सके कि कुछ भी उसका नहीं है और सब कुछ उसका ही है तो वह व्यक्ति अहंकार से पीड़ित कभी नहीं होगा।
किशोरी रमण
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Bahut hi sundar.....
Nice...
बहुत सुंदर उपदेश ।अहंकार से बचना चाहिए।