उनके झूठे वादों पर मुझे कभी ऐतवार न था
मैं जानता था कि उन्हें मुझसे कभी प्यार न था
पर नजाने क्यों आज भी उन्हें भुला नही पाता हूँ
जबभी बनाता हूँ तस्वीर उनका हीअक्स पाता हूँ
उनके लिए तो हमारा मिलना बस एक खेल था
हमारा उनका ये साथ चंद पलो का मेल था
वो चाहती है कि मै भी उनकी तरह चुप ही रहूँ
प्यार का यही अंजाम होता है मैं भी यही मान लूँ
पर मैं तो एक शायर हूँ भला चुप कैसे रहूँगा
जो उनसे न कह सका वहसारी दुनिया से कहूँगा
मुझे विश्वास है कभी उनके होठों पे रुदन आएगा
जब उनकेअंदर का सच उन्हेंआईना दिखलायेगा
किशोरी रमण
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Very nice...
वाह! वाकई अन्दर का सच जब कभी आईना दिखलाता है आत्मा की रूदन सच्चाई की पोल खोल देती है।
बहुत सुंदर रचना।
बधाई।