गाकर राष्ट्रगान हमने,कर्तब्यों की इतिश्री समझ ली है
पहनकर वस्त्र खादी का देशभक्त की छवि गढ़ ली है
क्या इतना ही काफी है देश को राष्ट्र बनाने के लिए
या सिर्फ शगुफ़ा भर है देश-भक्त कहलाने के लिए
देश के लिए मरने से अच्छा कोई संकल्प नही है
लोकतंत्र और संविधान का दूसरा विकल्प नही है
आओ थामे अपना तिरंगा अब यही हमारी पहचान है
एकसौ तीस करोड़ भारतीयोंका आन बान औ शान है
जब सबके हांथो में तिरंगा और मन मे विश्वास होगा
बढ़ेगा अपना ये कारवाँ मंज़िल भी हमारे पास होगा
आज वही है देशभक्त जो सबको प्यार सिखलाता है
देश को बुलंदियों पर ले जाने का रास्ता दिखलाता है
किशोरी रमण
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Very very nice....
सुंदर कविता
वाह , बहुत सुंदर कविता।