
एक बार एक व्यक्ति महात्मा बुद्ध के पास आया और कहने लगा, मैं बीस सालों से ईश्वर की खोज कर रहा हूँ पर ईश्वर मुझे कभी भी नहीं मिले। महात्मा बुद्ध पूछते हैं कि तुमने ईश्वर को खोजने के लिए क्या-क्या किया है ?वह व्यक्ति कहता है कि - मैंने कई तीर्थ स्थानों के दर्शन किए,बहुत सा दान पुण्य भी किया, बहुत से मंदिर,धर्म- स्थलों का निर्माण भी कराया लेकिन मुझे कभी भी ईश्वर के दर्शन नहीं हुए।
महात्मा बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा - कोई बात नहीं, मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। तुम शाम के समय मेरे आश्रम में आना।
शाम का समय होने लगता है। अचानक महात्मा बुद्ध उठते हैं और कुछ ढूंढने लगते हैं। उनके शिष्य उन्हें कुछ ढूंढते देखते हैं तो उनके पास आते हैं और पूछते हैं, गुरु जी आप क्या ढूंढ रहे हैं ? महात्मा बुद्ध कहते हैं कि मेरा एक कीमती मोती खो गया है। उसे ही ढूंढ रहा हूँ। सभी शिष्यगण भी बुद्ध की सहायता करने के लिए मोती ढूंढना शुरू कर देते हैं। थोड़ी देर में वह व्यक्ति भी वहाँ आ जाता है और सबको कुछ ढूंढता देख कर महात्मा बुद्ध से पूछता है, आप क्या ढूंढ रहे हैं ? इस पर महात्मा बुद्ध कहते हैं कि मेरा एक मोती खो गया है उसे ही ढूंढ रहा हूँ। और यह सब लोग मेरी मदद कर रहे हैं। वह व्यक्ति भी पूरी लगन के साथ मोती को ढूंढने में लग जाता है। ढूंढते ढूंढते रात होने लगती है लेकिन मोती कहीं नहीं मिलता। अब वह व्यक्ति परेशान हो जाता है तथा महात्मा बुद्ध से पूछता है - आप जरा याद करें कि आखिरी बार आपने मोती को कहाँ देखा था ? कुछ देर सोचने के बाद बुद्ध कहते हैं कि मैंने तो मोती को कुटिया के अंदर ही देखा था। वह आदमी थोड़ा गुस्से में आकर कहता है कि अगर मोती कुटिया के अंदर गुम हुआ है तो वह कुटिया के अंदर ही मिलेगा। आप व्यर्थ में ही इधर-उधर बाहर ढूंढ रहे हैं, और सब लोगों को अपने साथ लगाए हुए हैं। अब आप देखिए, सब का कितना समय ब्यर्थ हो रहा है।
अब बुद्ध मुस्कुराते हुए कहते है -यही तो मैं तुम्हें समझाना चाह रहा हूँ । जिस ईश्वर को तुम बीस वर्षों से इधर-उधर ढूंढने में लगे हो उसे क्या तुमने अपने अंदर झांक कर उस को तलाश करने की कोशिश की है ? वह व्यक्ति बिल्कुल मौन अवस्था में आ जाता है। महात्मा बुद्ध फिर कहते हैं, ईश्वर को खोजने के लिए हम तरह तरह के प्रयास करते हैं पर उसे पा नहीं पाते। कहते हैं कि वह ईश्वर तो सब जगह है पर फिर भी हमें दिखाई नहीं देता। गौर करना चाहिए कि ईश्वर तो है पर हम जो उसे तलाश करने का रास्ता चुनते हैं वह गलत होता है। ईश्वर को धन और वैभव से नहीं पाया जा सकता है। ईश्वर को तो प्रेम से, ज्ञान से,और ध्यान से ही पाया जा सकता है। अपनी आत्मा की आवाज सुनो। जब हम बोलते हैं, चलते हैं और कुछ काम करते हैं तो हमें हमारे अंदर से एक आवाज आती है, जो हमें और कार्य करने के लिए प्रेरणा देती है। सोचो जरा, यह आवाज कहाँ से आती है ? जब हम किसी को कुछ परेशान करने या कष्ट देने का विचार मन में लाते हैं तो हमारे अंदर की आवाज हमें ऐसा करने से रोकती है। जरा पहचानो वह कौन है ? ईश्वर तुम्हारे भीतर ही है और उनसे मिलने के लिए तुम्हें अपने भीतर ही जाना होगा।
वह ब्यक्ति महात्मा बुद्ध के चरणों में गिर जाता है और कहता है कि जो काम मैं बीस वर्षों में नहीं कर पाया वह आपकी कृपा से क्षण भर में ही हो गया। अब मैं ईश्वर से मिल सकता हूँ।
किशोरी रमण
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बहुत सही विवेचना युक्त कहानी।
very nice...
बहुत सुंदर और शिक्षाप्रद कहानी।