
ये दुनिया ये चमन तो हम सबका है
ये धरती ये गगन तो हम सबका है
देश के संशाधनों पर है सबका हक
क्यो भूख से तड़पता एक तबका है
आज नौजवानों के लिए क्यो काम नही है
किसानों के उपज का वाजिब दाम नही है
जिन्होंने दिया हैअपनी कुर्बानी देश के लिये
किसी भी शिलापट्ट पर उनका नाम नही है
चारो तरफ अँधेरा,बस चंद घरो में उजाला है
हर तरफ ठगी है, भ्रष्टाचार का बोल बाला है
जिन्हें सौपी गई है हिफाज़त की जिम्मेवारी
वो रक्षक ही तो हम सर्बो को लूटने वाला है
सवाल तो अपने आप से, क्यो मै खामोश हूँ
डरता हूँ मैं, या मै भी एहसान फरामोश हूँ
क्या मैं भी बिक गया हूँ इन दलाल के हाथों
होश खोने का नाटक है, या सचमुच बेहोश हूँ
किशोरी रमण
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very nice....
बहुत सुंदर सवाल