
इस दुनिया मे अक्सर ही ऐसा होता है कि भला करने वाले लोगो को ही कटघरे में खड़ा किया जाता है, और हद तो तब होती है जब अपने लोग भी आपसे सवाल करते है।
पर जिनकी फितरत ही होती है रौशनी फैलाना और दूसरों में खुशी बाँटना वे पत्थरो की परवाह किये बिना अपना काम करते रहते हैं।
इसी कशमश को अभिब्यक्त करने का प्रयास है ये गजल ,जिसका शीर्षक हैं.....
एक ग़ज़ल अपने नाम
बेबसी में जिन्दगी को हम मौत की तरह जीते हैं
बांटते है सबको खुशियाँ और खुद जहर पीते हैं
अपने फटे गिरेबान का एहसास नही है मुझको
औरों के चाक दामन को हम हँस हँस के सीते हैं
मैंने खुदको जलाकर औरो के लिए रोशनी की है
मुझे अंधेरो में भटकने वालो से पत्थर मिलते हैं
जिन अपनो को मैंने आदमी से खुदा बनाया वे अपने तो आज गैरों से भी गए बीते हैं
प्यार की तलाश में मैं ता -उम्र भटका हूँ यारो
प्यार के बदले मुझे बस नफरत ही मिलते हैं।
किशोरी रमण
Bahut hi Sundar.....
सुन्दर