तुझे समझ नही पाते ऐ ज़िन्दगी
तेरे चक्कर मे हम पड़े रहते हैं
हमारी उम्र तो सफर करती है
हम ख्वाहिशें लेकर खड़े रहते हैं
जब गर्दिशों के दिन आते हैं
अपने भी रिश्ते तोड़ जाते है
सुख जाते हैं जब दरख़्त पेडों के
परिंदे भी आशियाने छोड़ जाते हैं
जीतने पर सबको खुशी होती है
और हारने पर होती है निराशा
शायद इन्ही दोनो के बीच छुपा है
जटिल जिंदगी की सरल परिभाषा
जिनका भी यहाँ नाम बहुत है
वो जीवन मे परेशान बहुत है
फिर भी उनको समझ न आये
कि उम्र कम ,इम्तिहान बहुत है
ये सच हैकि झूठके पाँव नही होते
सूखे पेड़ो के नीचे छाव नही होते
सच बोलने की जहाँ हिम्मत न हो
वो मरघट होते हैं गाँव नही होते
किशोरी रमण
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Very nice.
वाह, बहुत सुंदर प्रस्तुति।