अक्सर हम अपनी सारी जिंदगी उन चीज़ों को पाने में लगा देते हैं जिनका एक समय के बाद कोई महत्व नही रह जाता। हम उन्ही चीजों को संभालने में लगे रहते हैं, साथ ही उन्हें ढो भी रहे होते हैं जो हमे डूबने से बचा नही सकती। प्रेम और सहयोग के बदले हम अहंकार और दौलत को बढ़ाने में लगे रहते हैं जो अंत मे हमारे डूबने के कारण बनते हैं। इन्ही विचारों पर आधारित है आज की ये लघुकथा।
बहुत पहले की बात है। एक ब्यापारी था जो अपनी नौका के सहारे व्यापार करता था। वह अपनी नौका लेकर दूसरे देशों में जाता और अपने शहर का सामान वहाँ बेचता। वहाँ का सामान लेकर वापस आता और उन्हें अपने यहाँ बेचता। इस तरह वह पैसे कमाता और उसके दिन मजे से गुजरते।
एक बार उसके मित्रो ने उसे सलाह दी। तुम नौका के सहारे दूर दूर तक पानी मे जाते हो। कभी भी तूफान या अन्य कारणों से हादसा हो सकता है। तुम तैरना सीख लो।
इस पर ब्यापारी ने कहा, मेरे पास समय नही है कि तैरना सीख सकूँ।
तब मित्रो ने सलाह दी कि अपने गाँव मे एक कुशल तैराक है। वह तीन दिनों में ही तुम्हे तैरना सीखा देगा।
ब्यापारी बोला, पर मेरे पास इतना समय भी नही है। तीन दिनों में तो मैं कारोबार कर के बहुत सारा धन कमा लूँगा।
लाचार होकर उसके मित्रो ने उसे आखरी सलाह दी।
चलो ठीक है, पर हमारी बात मान कर कम से कम दो खाली पीपे ही अपनी नौका पर रख लो। कभी जरूरत पड़ी तो इन पिपो के सहारे तैर कर तुम अपनी जान बचा सकते हो।
ब्यापारी अपने दोस्तों की बात मान गया। अब कुछ ऐसा संयोग हुआ कि एक बार तूफान उठा और उसमें उसकी पुरानी हो चुकी नौका डूबने लगी। उसके दूसरे नाविक जो तैरना जानते थे नाव से पानी मे कूद गये। ब्यापारी को पीपे की याद आई। ब्यापारी अपने पिपो के पास गया। वहाँ दो खाली पिपो के साथ दो पीपे और थे जिनमे स्वर्ण मुद्राएं रखी थी। उसका मन डवांडोल होने लगा कि कौन से पीपे उठाये। वह सोचने लगा, खाली पीपे लेकर कूदने से क्या होगा ? उसने स्वर्ण मुद्राओं से भरे पीपे उठाई और कूद पड़ा।
फिर वही हुआ जो होना था। वह डूब गया....
किशोरी रमण
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सुन्दर कहानी
Very nice.
बहुत सुंदर और शिक्षाप्रद कहानी।
Bahut hi sundar.