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Writer's pictureKishori Raman

कर्म के अनुसार ही फल मिलता है।



एक नौजवान भगवान बुद्ध के पास आता है। वह बहुत ही परेशान लग रहा होता है। बुद्ध उसकी परेशानी का कारण पूछते हैं। वह नौजवान बताता है कि उसके पिता जी का स्वर्गवास हो गया है। वह बताता है कि वह पिताजी की सदगति के लिए मृत्यु उपरांत किए जाने वाले संस्कारों का बहुत ही उम्दा ढंग से निर्वहन करना चाहता है, ताकि उनके पिताजी ने चाहे यहाँ जैसे भी अच्छे और बुरे कर्म किए हो पर वे स्वर्ग ही जाए।


फिर उसने आगे कहा कि मैं किसी भी साधारण पुजारी या महात्मा के पास जा सकता था। लेकिन मैं इस आग्रह के साथ आपके पास आया हूँ कि मृत्यु के बाद के क्रिया कर्म आप करें ताकि मेरे पिताजी स्वर्ग में जाएं और स्थाई रूप से वही निवास करें।


बुद्ध ने बड़े ध्यान से उसकी बातों को सुना और फिर उससे कहा, बाजार से दो मिट्टी के बर्तन खरीद कर ले आओ। इसके साथ ही कुछ मक्खन और कुछ पत्थर के छोटे टुकड़े भी साथ में लेते आना ताकि उससे मिट्टी के बर्तनों को भरा जा सके। वह नौजवान बाजार गया। वह यह सोचकर कि ये सब चीजें पिताजी के क्रिया कर्म करने के काम आयेगें इन चीजों को खरीद लाया।


इसके बाद बुद्ध के आदेश के अनुसार उस नौजवान ने एक मिट्टी के बर्तन को मक्खन से भर दिया और दूसरे बर्तन को पत्थर के टुकड़ों से भर दिया और दोनो के मुंह को बंद कर दिया। इसके बाद बुद्ध ने कहा कि दोनों मिट्टी के बर्तनों को नजदीक के तालाब में रख दो। नौजवान ने वैसा ही किया और दोनों बर्तन तालाब के तली में बैठ गए। इसके बाद बुद्ध ने एक लकड़ी की छड़ी लाने को कहा और उस छड़ी से दोनों मिट्टी के बर्तनों को तोड़ने का आदेश दिया। नौजवान ने वैसा ही किया यह सोचते हुए कि उसके पिताजी के लिए ये सब बिधि बिधान कराया जा रहा हैं। वह वैसा ही करता गया जैसा कि बुद्ध ने कहा था।


जब उस नौजवान ने छड़ी से मिट्टी के दोनों बर्तनों को तोड़ दिया तो पहले बर्तन जिसमें मक्खन भरे हुए थे उससे मक्खन बाहर निकल आए और पानी के ऊपर आकर तैरने लगे। जबकि पत्थर के टुकड़े से भरे हुए बर्तन टूटने के बाद पत्थर के टुकड़े पानी की तली में ही बैठ गये।


इसके बाद बुद्ध ने उस नौजवान से कहा, मुझे जितना काम करना था वह मैंने कर दिया है। अब जाओ अपने पुरोहित को यह दिखाओ कि मक्खन पानी पर तैर रहा है जबकि पत्थर के टुकड़े पानी मे बैठ गये हैं। उनसे कहो कि वे अपने प्रयास से कुछ ऐसा करे कि मक्खन पानी मे बैठ जाये औऱ पत्थर तैरने लगे।


इस पर वह नौजवान बोला, क्या आप मजाक कर रहे है ? यह कैसे हो सकता है कि पत्थर पानी मे तैरे और मक्खन पानी मे डूब जाय। यह तो प्रकृति के नियम के खिलाफ है। पत्थर पानी से भारी है तो वह डूबेगा ही। लेकिन मक्खन तो पानी से हल्का है अतः पानी के ऊपर आएगा और पानी पर तैरेगा ही।


इस पर बुद्ध बोले। नौजवान तुम तो प्रकृति के बारे में बहुत कुछ जानते हो। लेकिन तुम ये समझना नही चाहते कि यह प्रकृति का नियम सब पर लागू होता है। अगर आपके पिता जी ने अच्छे कर्म नही किये हैं तो उन्हें पत्थर की तरह डूबना ही है, कोई उन्हें ऊपर नही ला सकता। लेकिन अगर उन्होंने अपने जीवन मे अच्छे कर्म किये है तो उन्हें मक्खन की तरह ऊपर जाना निश्चित है। कोई उन्हें नीचे नही ठेल सकता है। ये कर्म के नियम है। यही प्रकृति के नियम है। हमारी दिक्कत है कि हम समझते है कि कोई अदृश्य शक्ति हमारा साथ देगी और यही सोंच कर हम अपने ब्यवहार और अपने कर्म को बदलने का प्रयास नही करते।


वास्तविक जीवन में हम देखते है कि हमलोग गलत कामो के लिए भी अच्छे परिणाम की कामना करते हैं। यह भूल जाते है कि फल तो कर्म के अनुसार ही मिलता है। अतः हमें अपने कर्म पर ध्यान देना है और अपने दैनिक जीवन मे अच्छे कर्म ही करना है।


किशोरी रमण



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77 views4 comments

4 Comments


Unknown member
Dec 20, 2021

Bahut hi Sundar....

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sah47730
sah47730
Dec 15, 2021

सुन्दर उपदेश वाली कथा।

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kumarinutan4392
kumarinutan4392
Dec 12, 2021

Nice

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verma.vkv
verma.vkv
Dec 12, 2021

वाह, बहुत सुंदर उपदेश ।

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