top of page
  • Writer's pictureKishori Raman

कल और आज


अक्सर हम सब अपने बीते कल की कड़वाहट को ढोते ढोते अपने बर्तमान आज को भी कड़वाहट से बदरंग और बेमजा बना देते हैं। जबकि हमे अपने बीते हुए कल को भूल कर बर्तमान में जो कुछ खुशियाँ उपलब्ध है उसको खुशी खुशी जीना चाहिए और अपने भविष्य को लेकर एक सकारात्मक सोच रखना चाहिए , इन्ही सब विचारों पर आधारित है ये कविता जिसका शीर्षक है...… कल और आज (1) कल मेरे साथी आज के घर में एक खिड़की है जो कल की तरफ खुलती है। उसी खिड़की से देख रहा हूँ तुम्हारे कल को जो शायद मेरा भी था। वह कल जब तुम्हारे जख्म नासूर की तरह रिस रहे थे । और तुमने इसी खुशी में मुर्दो को कब्र में पलटने का बहाना खोजा था। और शायद सचमुच चंद वर्तमान के हाँथो उसे पलटते रहे थे और तड़पते रहे थे इस दर्द में कि तुम तुम हो तुम्हारी मासूम आंखों का रुदन मैं देखता था, समझता था और अनदेखा करता था क्योकि वह तुम्हारा था। मैं मजबूर था तुम और मैं की परिभाषा में खुद को कैद रखने को। ( 2 ) आज मेरे साथी कौन है ऐसा जिसे सब कुछ मिला हो तो फिर आओ बहुत कुछ न पाने के दर्द को कुछ पाने की खुशी में डुबो दो बंद रहने दो उस खिड़की को जो कल की तरफ खुलती है अहा कितना सुंदर है आज के घर का आँगन इन्हें बुहार दो इन्हें साफ कर दो ख्बाबों की परियाँ उतरेगी यहाँ क्रिसेंथेनाम के पीलापन को पसरने दो और सैल्विया की लाली तुम्हारे आँगन में बिखरने को आतुर है इसे बिखरने दो ना और पैंजी, उफ कितनी नाजुक है दोस्त , जिंदगी तुम्हारी है हमसफर भी तुम्हारा है तुम्हारी और तुम्हारा एक नए गीत को जन्म दे सके जिसे ये सारी दुनियां गुनगुनाये और मैं भी फक्र करूँ कि मेरा दोस्त कवि है , शायर है । किशोरी रमण




34 views2 comments
Post: Blog2_Post
bottom of page