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कविता " एक गुज़ारिश "

  • Writer: Kishori Raman
    Kishori Raman
  • Nov 19, 2022
  • 1 min read

जब इस ज़िन्दगी की शाम होगी और उम्र अपनी तमाम होंगी जब यहाँ दूर तलक अँधेरा होगा सूरज की किरणों पे पहरा होगा जब झूठ का बोल बाला होगा और सच्चे का मुहँ काला होगा जब अपने भी नजरें फेर लेगें यार दोस्त सब फब्तियाँ कसेंगे गुज़ारिश है तुमसे,कब्र पर आना फ़ातिहा पढ़ना और फूल चढ़ाना मेरी बदनामी के दाग तुम्हे न लगे बच के रहना और सबको बताना कि मरने वाले को कहाँ पता था क्यों सजा मिली, क्या खता था वह गुमनामी में यहाँ सो रहा है मर कर किसी का पाप धो रहा है सारा जमाना ही उसके खिलाफ था पर वह आदमी पाक और साफ था वह दुनिया के चलन से अनजान था क्योंकि वह फ़रिश्ता नही इंसान था किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow,share and comments. Please follow the blog on social media.link are on contact us page. www.merirachnaye.com


3 Comments


sah47730
sah47730
Jan 22, 2023

कविता शानदार, पर दर्द बेशुमार है!

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Unknown member
Dec 20, 2022

Bahut hi

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verma.vkv
verma.vkv
Nov 19, 2022

Heart touching poem.

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