जब इस ज़िन्दगी की शाम होगी
और उम्र अपनी तमाम होंगी
जब यहाँ दूर तलक अँधेरा होगा
सूरज की किरणों पे पहरा होगा
जब झूठ का बोल बाला होगा
और सच्चे का मुहँ काला होगा
जब अपने भी नजरें फेर लेगें
यार दोस्त सब फब्तियाँ कसेंगे
गुज़ारिश है तुमसे,कब्र पर आना
फ़ातिहा पढ़ना और फूल चढ़ाना
मेरी बदनामी के दाग तुम्हे न लगे
बच के रहना और सबको बताना
कि मरने वाले को कहाँ पता था
क्यों सजा मिली, क्या खता था
वह गुमनामी में यहाँ सो रहा है
मर कर किसी का पाप धो रहा है
सारा जमाना ही उसके खिलाफ था
पर वह आदमी पाक और साफ था
वह दुनिया के चलन से अनजान था
क्योंकि वह फ़रिश्ता नही इंसान था
किशोरी रमण
BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE
If you enjoyed this post, please like , follow,share and comments.
Please follow the blog on social media.link are on contact us page.
www.merirachnaye.com
कविता शानदार, पर दर्द बेशुमार है!
Bahut hi
Heart touching poem.