बापू तेरी प्यार की भाषा सत्य अहिंसाकी परिभाषा समझ नहीं हम पाते है बस झूठा स्वांग रचाते है चारो ओर मची है धूम गाँधी बाबा कहाँ हो तुम ? न्याय -तंत्र बना है बहरा सूरज की किरणों पे पहरा मन्दिर में भगवान बना के फूल पत्ती तुम्हे चढ़ा के तेरे चरण रहे सब चूम गाँधी बाबा कहाँ हो तुम ? बात बात पे दंगे होते जाति धर्म के पंगे होते चारो तरफ बर्वादी है जयकारो में गाँधी है यहाँ लोग हक से महरूम गाँधी बाबा कहाँ हो तुम ? यही हमारा राम-राज्य है मन मर्जी का साम्राज्य है चोर पहनकर तेरी खादी लाते भ्रष्टाचार की आँधी ढूँढ़ रहे शोषित मज़लूम गाँधी बाबा कहाँ हो तुम ? जयंती तेरी सभी मनाते और तुझपर फूल चढ़ाते झूठ के हम आदी हैं जो सच बोले जेहादी है सच बैठा दबा कर दुम गाँधी बाबा कहाँ हो तुम ? किशोरी रमण
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Very nice.,.
बहुत सुन्दर और वास्तविकता को उजागर करती समसामयिक रचना।
:-- मोहन मधुर"
बहुत सुंदर रचना।