Kishori Raman
कविता " तब और अब "

समय के साथ बदलाव तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। ये बदलाव अगर प्रकृति, समाज और हमारे जीवन मूल्यों को प्रभावित करते है तो "अच्छा और बुरा" का आकलन करने का मन करता है। इसी बदलाव का तुलनात्मक विश्लेषण और निजी आकलन है आज की कविता जिसका शीर्षक है तब और अब तब हमारी चप्पलें टूटी और शर्ट पुराना होता था फूस की झोपड़ी ही सबका ठिकाना होता था बैठते थे हम सब प्रकृति की गोद मे मद-मस्त मड़ुआ-मकई की रोटी अपना खाना होता था तब प्रकृति के संग हम सबका याराना होता था मौसम का हर मिजाज जाना पहचाना होता था मिट्टी के खुशबू से सराबोर होते थे हमारे गीत फगुआ,चैता, कजरी, जीने का बहाना होता था तब हमसबों की ज़ुबान भले खामोश रहता था पर तूफ़ानो कोभी मात देने का जोश रहता था हमे भरोसा था अपने बाज़ुओं की ताकत पर अन्याय के ख़िलाफ़ हम सबो में रोष रहता था तब ज़माने से हम चाहे लाख ठोकरें खाते थे पर अपने रिश्तों को बड़े जतन से निभाते थे जबभी किसी से मिलते थे प्यार से मिलते थे गाँव मे आये हर पाहुन को अपना बताते थे अब बदला जमाना,किसी पे बिश्वास नही होता पास रह कर भी किसी से मुलाकात नही होता सब रहते हैं एक छत के नीचें अपने मे मशगूल महीनों गुजर जाते हैं, किसी से बात नही होता दुनिया की भीड़ में आज हर शख्श अकेला है जिंदगी की बिसात पर शह-मात का खेला है दौड़ रहे हैं सब यहाँ रेस के घोड़े की तरह ये भूल कर कि जिन्दगी चंद दिनों का मेला है किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow,share and comments. Please follow the blog on social media.link are on contact us page. www.merirachnaye.com