
तुम चले गए चुपचाप हमे छोड़ गए सोता जाने के पहले यार कुछ तो कहा होता वो तेरे दोस्त ही हैं जो गम मना रहे हैं वरना कौन है यहाँ जो तेरे लिए रोता आज पता नही हमारे सब दोस्त कहाँ होंगे वो हमें याद तो करेंगें ही चाहे जहाँ होंगे यहाँ वक़्त कभी रुकता नही किसी के लिए कल हम नही हमारे कदमो के निशां होंगे ज़िंदगी के सफर में मैं कब तक चल पाता हूँ अपने दोस्तों का साथ कब तक निभाता हूँ बुलावा आया तो चल दूँगा चादर समेट कर इसी लिए तो अब रुख़्सती के गीत गाता हूँ जब तक जिन्दा हैं दोस्तो से प्यार करते रहिये अगर प्यार नही तो उनसे तकरार करते रहिये बड़ा मजा आता है किसी अपने को चिढ़ाने में चिढ़ाकर ही सही दोस्तों की ख़ैरखबर लेते रहिये
किशोरी रमण
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बहुत सुंदर कविता।
वाह, बहुत सुंदर कविता दोस्तों को समर्पित।
Bahut hi sundar.....