" नया सबेरा हो "
आओ मिलकर दुआ करें
कल एक नया सबेरा हो
न सूरज पे कोई पहरा हो
न रौशनी कहीं ठहरा हो
न जाति धर्म का बंधन हो
न दुखियों का क्रंदन हो
हर घर में खुशहाली हो
हर रोज ईद-दीवाली हो
इंसानियत की पूजा हो
शोषक न कोई दूजा हो
विचार भले अनेक हो
पर मन सबका एक हो
अब दूर हर परेशानी हो
सबकी सुखद कहानी हो
सच्चे का बोल-बाला हो
झूठे का मुहँ काला हो
कल सूरज जल्दी निकले
और सबका दूर अँधेरा हो
आओ मिल कर दुआ करें
अब एक नया सबेरा हो
किशोरी रमण
BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE
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सुन्दर एवं विचार युक्त कविता।
very nice....
बहुत सुंदर कविता।