
पता नही कब कौन चुपके से यहाँ आएगा
और सबको अल- विदा कह जाएगा
सब्र करना ,उसका साथ यहीं तक का था
अब लौट कर वह वापस नही आएगा
किसी के जाने के बाद उदास मत होना
उसके बारे में सोंच कर परेशान मत होना
जीवन- मरण सब ऊपर वाले के हाथ मे है
नई कोपलें शीघ्र फूटेंगी निराश मत होना
छोड़ो अब आपस मे लड़ना -झगड़ना
पता नही किस वक़्त पड़ेगा बिछड़ना
मुठ्ठी में बचे समय को प्यार से गुजरो
खुशी के पलों को ठीक से पकड़ना
सच से कड़वी कोई दवाई नही होती
झूठ से बढ़ कर कोई बुराई नही होती
लोग गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं यहाँ
वो जो दिखते है उसमें सच्चाई नही होती
किशोरी रमण
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सच कहा आपने
आज के वातावरण में झूठ की अनगिनत परतों के नीचे दबती हुई सच्चाई को ढूंढना पड़ता है फिर भी नहीं मिलती। डर है कि झूठ के बोझ तले कड़ाहती सच्चाई कहीं दम न तोड़ दे। या यूं कहें कि झूठ के बोझ तले सच्चाई अंतिम सांसें गिन रही है।
Very nice👍
वाह, बहुत सुंदर कविता।