कविता "हम कहाँ जा रहे?"
- Kishori Raman
- Jul 22, 2022
- 1 min read

मुस्कुराने की कोई वज़ह नही
फिर भी हम मुस्कुराते है
जब पूछते हैं सब, कैसे हो ?
"सब चंगा सी" ये बताते हैं
यहाँ युवा बेरोजगार है
और महंगाई सेआजिज़ है
पैसे वाले मौज कर रहे
जाने किसकी साज़िश है ?
शिक्षा,स्वास्थ और रोजगार
चिंता के अब विषय नही है
लूटने वाले सब लूट रहें है
माथे पे कोई शिकन नही है
बदला है माहौल यहाँ का
अब नफरत की आग है
शांति की बात कौन करे ?
यह सबसे बड़ा गुनाह है
अब नई हवा चली है
परिभाषा भी बदली है
नए शब्द गढ़े जा रहे
अब नई शब्दावली है
हम कैसी संस्कृति ला रहे
सोंचो हम कहाँ जा रहे ?
अपने घर मे आग लगा कर
नफ़रत से हम क्या पा रहे ?
किशोरी रमण
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Bahut hi sundar...
वाह , आज के हालात पर सुंदर रचना।