मुस्कुराने की कोई वज़ह नही
फिर भी हम मुस्कुराते है
जब पूछते हैं सब, कैसे हो ?
"सब चंगा सी" ये बताते हैं
यहाँ युवा बेरोजगार है
और महंगाई सेआजिज़ है
पैसे वाले मौज कर रहे
जाने किसकी साज़िश है ?
शिक्षा,स्वास्थ और रोजगार
चिंता के अब विषय नही है
लूटने वाले सब लूट रहें है
माथे पे कोई शिकन नही है
बदला है माहौल यहाँ का
अब नफरत की आग है
शांति की बात कौन करे ?
यह सबसे बड़ा गुनाह है
अब नई हवा चली है
परिभाषा भी बदली है
नए शब्द गढ़े जा रहे
अब नई शब्दावली है
हम कैसी संस्कृति ला रहे
सोंचो हम कहाँ जा रहे ?
अपने घर मे आग लगा कर
नफ़रत से हम क्या पा रहे ?
किशोरी रमण
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Bahut hi sundar...
वाह , आज के हालात पर सुंदर रचना।