सवाल है कि क्या मैं हार मान लूँ
अब जाना है यहाँ से यह जान लूँ
ये उम्र तो बीत गयी उन्हें मनाने में
क्याअंत समय मे उनसे रार ठान लूँ
गुजरे जमाने को हम याद करते है
कभी-कभी खुद से फरियाद करते है
ज़िन्दगी भर रही शिकायत जिनसे
उनकी परछाईयों से संवाद करते है
जो कोई भी आपका खास होता है
वही तो हरदम आपके पास होता है
कहते है जिन्दगी एक खिलौना है
क्यों टूटने से मन उदास होता है
जो चला गया यहाँ से वह फिर आएगा?
छुपा-छुपाई खेल रहा था ये बतलायेगा
इसी आशा में यहाँ जी रहे हैं कई लोग
क्या समय का पहिया उल्टा घूम पाएगा?
किशोरी रमण
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वाह! भावुकता के अंगूर दाने से निचोड़कर प्रस्तुत की गई यह रचना अतीत की गहराई के दर्द की अनुभूति कराती है। सुन्दर प्रस्तुति।
:--- मोहन "मधुर"
वाह, ज़िन्दगी से रूबरू कराता बहुत सुंदर कविता ।
Bahut hi sundar....