बहुत से लोगों में अपने काम को टालने की आदत होती है।ऐसा वे अपने आलसीपन के कारण करते हैं। हमारे गुरुओं और चिंतकों ने हमेशा ही अपने काम को समय पर करने की शिक्षा दी है, और आलसीपन को अवगुण की संज्ञा दी है। कबीर दास जी कहते है कि " कल करे सो आज कर,आज करे सो अब। पल में प्रलय होयगा, बहुरि करोगे कब " इसी सम्बंध में एक कहानी प्रस्तुत है। गौतम बुद्ध के शिष्यों में एक ऐसा शिष्य भी था जो बहुत आलसी था। गौतम बुद्ध उस शिष्य से भी बहुत स्नेह करते थे और उसकी इस आदत को सुधारना चाहते थे। एक बार जब वे अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थे तो एक कहानी सुनाया। एक गांव में एक ब्राह्मण रहा करता था। वैसे तो वह बहुत अच्छा इंसान था लेकिन उसके अंदर एक बहुत ही खराब आदत थी। वह था काम को टालने की आदत। वह हमेशा ही अपने काम को कल पर टालते रहता था। वह यह मानकर चलता था कि जो कुछ भी होता है वह भाग्य से होता है अतः जल्दीबाजी करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि जो भाग्य में लिखा होगा वह तो होकर ही रहेगा। इस तरह उसका आलसीपन और काम को टालने की उसकी प्रवृत्ति उसके स्वभाव का हिस्सा बन गया। एक दिन एक साधु उसके घर आया। ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने उस साधु का काफी इज्जत सत्कार किया। साधु उसके स्वागत और सेवा से खुश हो गए। जब वे वहाँ से चलने लगे तो उस ब्राह्मण को एक पारस पत्थर दिया और कहा कि इस पारस पत्थर से जितना चाहो सोना बना लेना और धन इकट्ठा कर लेना ताकि तुम्हारी जिंदगी सुख से बीत सके। मैं एक सप्ताह बाद आऊंगा और फिर अपना यह पत्थर ले जाऊंगा। ब्राह्मण ने पत्थर ले लिया और साधु वहाँ से चला गया। साधु के जाने के बाद ब्राह्मण ने घर में लोहा खोजा। उसे बहुत थोड़ा लोहा मिला जिसे उसने सोना बना लिया और उसे बेच कर कुछ सामान खरीद लिया। अगले दिन उसकी स्त्री के बहुत जोर देने पर वह लोहा खरीदने बाजार गया तो लोहा कुछ महँगा था। वह यह सोच कर लौट गया कि दो-तीन दिनों के बाद वह फिर बाजार आएगा और लोहा खरीदेगा। दो-तीन दिनों के बाद वह बाजार गया तो उसे पता चला कि लोहा पहले से भी ज्यादा महँगा हो गया है। कोई बात नहीं उसने सोचा,कुछ दिनों में भाव जरूर नीचे आ जाएगा तभी खरीदेंगे। लेकिन लोहा सस्ता नहीं हुआ और दिन बीतते गए।आठवें दिन साधु आया और उसने अपना पारस पत्थर वापस माँगा। ब्राह्मण ने कहा, महाराज मेरा तो सारा समय यूँ ही निकल गया। अभी तो मैं कुछ भी सोना नहीं बना पाया। आप कृपा करके इस पत्थर को कुछ दिनों के लिए और छोड़ दीजिए। लेकिन साधू राजी नहीं हुआ। उसने कहा, तुम जैसा आलसी आदमी मैंने जीवन में कभी नहीं देखा। तुम्हारी जगह कोई और होता तो पता नहीं कितना सोना बना चुका होता। जो आदमी समय का सही उपयोग नहीं करता वह आदमी कभी सफल नहीं हो सकता।ब्राह्मण अब पछताने लगा पर अब क्या हो सकता था ? साधु पत्थर लेकर जा चुका था। उसे अपने आलसीपने की तथा भाग्य पर जरूरत से ज्यादा यकीन करने की सजा मिल चुकी थी। सच ही कहा गया है कि आलस्य मनुष्य के शरीर का सबसे बड़ा शत्रु है। अब शिष्य को गौतम बुद्ध की कहानी का सही मर्म समझ मे आ चुका था। इसके बाद उसने कभी आलस नहीं किया।यह सच ही कहा गया है कि अगर जिंदगी में सफल होना है तो आलस को छोड़ना होगा और कर्म पर विश्वास करना होगा। किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow, share and comments.
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बहुत सुंदर प्रस्तुति।
Bahut hi Sundar...