एक समय की बात है कि गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए थे। उनमें से एक शिष्य ने बुद्ध से प्रश्न किया - भन्ते, हम अपने क्रोध पर कैसे काबू पा सकते हैं ?
बुद्ध तो पहले मुस्कुराये और फिर बोले, मैं तुमसबो को एक कहानी सुनाता हूँ। मुझे विश्वास है कि कहानी सुनकर न सिर्फ क्रोध को समझ पाओगे बल्कि उसपर काबू पाना भी सीख जाओगे। और बुद्ध ने अपने शिष्यों को एक कहानी सुनाई।
एक गाँव मे एक झगड़ालू औरत रहती थी। वह छोटी छोटी बातों के लिए भी किसी से झगड़ पड़ती। गुस्से में वो अपना आपा खो देती और गाली- गलौज पर उतर आती। जब उसका गुस्सा शांत होता तो उसे अपने कृत्य पर काफी शर्मिन्दगी महशुस होती और वह दुखी हो जाती। उसके इस आदत से सारे परिवार वाले दुखी रहते और घर मे अशान्ति रहती।
एक दिन एक भिक्षु उसके दरवाजे पर आये और भिक्षा की याचना की। उस औरत ने भिक्षु को अपनी समस्या बताई। उसने कहा कि वह बहुत जल्दी गुस्सा हो जाती है तथा चाह कर भी अपने गुस्से पर काबू नही कर पाती है।
उसने भिक्षु से अपने गुस्से पर काबू करने हेतू उपाय पूछा। उसकी समस्या सुनकर भिक्षु ने अपने झोले से एक छोटी सी शीशी निकाली और उस औरत को देते हुए कहा - यह गुस्से को काबू में करने की दवा है। जब भी तुम्हे गुस्सा आये इस दवा की चार बूँद अपने जीभ पर डाल लेना और जीभ को दस मिनट तक अपने मुहँ के अन्दर रखना। ध्यान रहे कि दस मिनट तक तुम्हारा मुहँ नही खुले वरना दवा का असर नही होगा। इतना कह कर वह भिक्षु वहाँ से चले गये। अब उस औरत ने भिक्षु के बताये अनुसार उस दवा का सेवन आरम्भ कर दिया। सात दिनों के अन्दर ही उसकी गुस्सा करने की आदत समाप्त हो गई।
सात दिनों के बाद वह भिक्षु उसके दरवाजे पर वापस आये। वह औरत उनके चरणों मे गिर कर बोली- आपकी दवा ने तो जादू जैसा असर किया है। अब मुझे गुस्सा नही आता है। यह सब आपके दवा का ही कमाल है। अब मेरे परिवार में सुख शांति का माहौल है।
यह सुनकर वह भिक्षु मुस्कुराते हुए बोले- असल मे इस शीशी में तो कोई दवा ही नही थी, उसमे तो बस पानी भरा हुआ था। सही बात तो ये है कि तुमने अपने क्रोध पर दवा के कारण नही बल्कि चुप रह कर विजय प्राप्त की है।
उपरोक्त कहानी सुनाने के बाद बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा कि हम अपने क्रोध पर काबू चुप और शान्त रह कर प्राप्त कर सकते हैं।
अगर हम आज के संदर्भ में देखे तो पायेगें कि हमारी जिंदगी में ऐसे क्षण आते रहते हैं जब हम अपना धैर्य और आपा खो देते हैं। तब हमारा दिमाग काम करना बंद कर देता है तथा जुबान से अपशब्द निकलने लगते हैं जिससे कि हमे बाद में शर्मिंदा होना पड़ता है। गुस्से में आदमी न केवल मानसिक हिंसा बल्कि शारीरिक हिंसा पर भी उतर आता है। ये हिंसा इन्ही गुस्से भरे क्षणों की परिणीति होती है। यह गुस्सा कुछ ही क्षणों तक रहता है। अगर हम उन क्षणों में अपने को चुप और शान्त रखें तो हमारा क्रोध शान्त हो जाएगा।
किशोरी रमण
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very nice.....
बुद्ध की कहानी द्वारा न्दर और उपयोगी सुझाव
बिल्कुल सही ।क्रोध को नियंत्रित करने का सबसे सरल उपाय ।