एक बार तथागत बुद्ध अपने कुछ शिष्यों के साथ एक बन से गुजर रहे थे। पतझड़ का मौसम था। पेड़ों के सारे पत्ते जमीन पर गिरे हुए थे। सारा जमीन सूखे पत्तों से ढका हुआ था। उन पत्तो को देख बुद्ध अपने शिष्यों से बोले। यह बन कितना सुन्दर लग रहा है। क्या तुमलोग इस बन की सुन्दरता को देख पा रहे हो ?
शिष्यगण चौक गये। एक शिष्य ने कहा- भगवन, क्षमा करें। यहाँ तो सिर्फ पत्ते ही दिख रहे हैं। इसमे भला सुन्दरता कहाँ दिख रही है ?
तब बुद्ध शिष्यों से कहते हैं- वत्स, सुन्दरता का सम्बंध बाहर से नही बल्कि भीतर से होता है। यदि तुम्हारा मन सुन्दर है तो तुम्हे बाहर का हर चीज सुन्दर ही दिखाई देगी। अगर तुम्हारा हृदय ही घृणा और लालच से भरा होगा तो सब तुम्हे खराब ही दिखाई पड़ेगा।
एक शिष्य ने पूछा, हम अपने भीतर के सुन्दरता को कैसे पहचाने ? इसे कैसे बढ़ाएं ?
भगवान बुद्ध कहते हैं - इसे पहचानने के लिए तुम्हे अपने अंदर झाँकना होगा। इसे बढ़ाने का तरीका है कि अपने ज्ञान से अपने मन को स्वच्छ करके प्रयास करना चाहिए।इस पर शिष्यगण कहते हैं कि ज्ञान का भंडार तो आप ही है। आपके द्वारा दिया गया ज्ञान ही हमारा उद्धार कर सकता है।
इस पर भगवान बुद्ध मुस्कुराते हैं। फिर अपने दोनों हाथों से कुछ सूखे पत्तों को जमीन से उठा लेते हैं और अपने शिष्यों से पूछते हैं- मेरे प्यारे शिष्यों, क्या तुम बता सकते हो कि इस बन में पत्ते अधिक हैं या फिर मेरे हाथों में। बुद्ध की बातों को सुनकर शिष्यगण हँसने लगते हैं, क्योंकि बुद्ध का प्रश्न ही बच्चों वाला था। सभी शिष्यों में से एक शिष्य बोलता है। भगवन यह कैसा प्रश्न है ? इस बन के पत्तों की तुलना में आपके हाथों में पत्ते तो बहुत कम है। बुद्ध उस शिष्य को अपने पास बुला कर अपने हाथों के पत्तों को उसके हाथों में रख कर कहते हैं, इन पत्तों की तरह ही इस संसार में ज्ञान का भंडार भरा हुआ है। मैं तुम्हें उतना ही ज्ञान दे सकता हूं जितना मेरे पास है। अगर तुम इससे अधिक पाना चाहते हो तुम्हें खुद प्रयास करना होगा।
बुद्ध अपने शिष्यों को समझाना चाहते हैं कि बेशक शुरुआत थोड़े से ही होगी लेकिन अगर उससे ज्यादा जानना चाहते हैं तो आप को खुद ही मेहनत करनी होगी। आपके बारे में दूसरा कोई थोड़ा बहुत ही बता सकता है, लेकिन अगर आप ख़ुद को पूरी तरह जानना चाहते हैं तो आपको खुद ही प्रयास करना होगा। भगवान बुद्ध कहते हैं कि एक बात का हमेशा ख्याल रखना। दूसरों से सहायता अवश्य लो लेकिन दूसरों के भरोसे बैठे मत रहना बल्कि मेहनत और प्रयास करते रहना।
किशोरी रमण
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Very nice story.
बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक कहानी।