एक गुरु और उनका एक शिष्य एक गाँव से गुजर रहे थे। चलते चलते उनको प्यास लगी। सामने ही एक टूटा -फूटा घर नजर आया। शिष्य ने उस घर का दरवाजा खटखटाया। उस घर के साथ लगा खेत बहुत ही बड़ा एवं उपजाऊ नजर आ रहा था। लेकिन खेत को देख कर लग रहा था कि उसका मालिक उस पर जरा भी ध्यान नही दे रहा है। सारे खेत मे झाड़ियां उगी हुई थी।
तभी घर का दरवाजा खुला और एक किसान जिसने फटे पुराने कपड़े पहन रखे थे, बाहर निकला। उसके पीछे उसकी पत्नी और तीन बच्चे भी निकले। उन सर्बो को देखकर लग रहा था कि उनकी अर्थिक स्थिति ठीक नही है क्योंकि सभी के कपड़े फटे पुराने थे। शिष्य ने विनम्र आवाज़ में कहा। हम लोगों को प्यास लगी है। क्या हमें पानी मिल सकता है ? किसान ने गुरु और शिष्य को पीने के लिए पानी दिया। पानी पीते हुए गुरुजी ने कहा - मैं देख रहा हूँ कि आपका खेत इतना बड़ा है पर इसमे कोई फसल नही लगाई गई है। आखिर आप लोगों का गुजारा कैसे चलता है ? आदमी बोला- हमारे पास एक भैंस है। वह काफी अच्छा दूध देती है। दूध बेचकर कुछ पैसे मिल जाते है और बचे हुए दूध का हम सेवन करते है और हमारा गुजरा ऐसे ही चलता है।
अब चूँकि शाम होने वाली थी अतः गुरु और शिष्य ने सोंचा कि आज रात यहीं गुजारा जाय। उन लोगों ने किसान से अनुमति ली और वही रुक गये। आधी रात को गुरु ने शिष्य को उठाया और उसके कान में धीरे से कहा- चलो, हमे इसी समय यहाँ से निकलना है, और चलने के पहले इसकी भैस भी खोल कर इसे दूर ले जाकर जंगल मे छोड़ देनी है। शिष्य गुरु की बात सुन कर चौक उठा। जिस गुरु ने उसे अच्छी अच्छी बातें सिखाई थी वही अगर किसी का बुरा करने को कहे तो आश्चर्य तो होगा ही। फिर भी वह अपने गुरु का आदेश टाल नही सकता था। उसने किसान की भैस खोल कर उसे जंगल मे ऐसी जगह पर छोड़ा जहाँ से उसका किसान के पास वापस लौटना असंभव था।
इस घटना को हुए दस साल बीत गए और वह शिष्य अब खुद भी बड़ा गुरु बन चुका था। उसके मन मे ये पाप-बोध था कि उसने किसान की भैंस खोलकर गलत काम किया है। उसने सोचा क्यों ना अपनी गलती सुधारी जाए ? इसके लिए उस किसान से मिला जाए और उसकी आर्थिक मदद की जाए। और फिर वह निकल पड़ा उस किसान से मिलने हेतु। कुछ समय चलने के बाद शिष्य वहीं पहुँचा जहाँ दस साल पहले वह उस किसान से मिला था। वहाँ की स्थिति देखकर वह चौक पड़ा। वहाँ एक बड़ा सा घर बना हुआ था। फल के बड़े-बड़े पेड़ लगे हुए थे। खेतों में फसल लहलहा रही थी। शिष्य को लगा कि भैंस के गुम होने के बाद वह परिवार अपना सब कुछ बेच कर कहीं और चला गया होगा। इसीलिए वह शिष्य वहाँ से लौटने लगा। तभी उस शिष्य को वह किसान वहाँ नजर आया। शिष्य ने उससे कहा, शायद आप मुझे नहीं पहचानते हैं ? पर मैं बहुत पहले आपसे मिल चुका हूँ। अब उस किसान ने कहा , हाँ- मैं आपको जानता हूँ। उस दिन तो आप लोग मुझे बिना बताए ही चले गए थे। और उसी दिन न जाने कैसे क्या हुआ कि मेरी भैंस कहीं चली गई जो आज तक नहीं लौटी है। कुछ दिनों तक तो मुझे समझ में ही नहीं आया कि मैं क्या करूँ ? या मैं क्या कर पाऊंगा जीने के लिए ? मुझे कुछ न कुछ तो करना ही था, तो पहले लकड़ियां काटकर बेचने का काम शुरू किया और उससे मैंने कुछ पैसे इकट्ठे किए। फिर जो कुछ पैसे मेरे पास इकट्ठे हुए उससे अपने खेतों में फसल उगाई। मुझे मेरी मेहनत का फल मिला और फसल बहुत ही अच्छी हुई। जो फसल बेचने से पैसे मिले उसे फलों के बगीचे में लगा दिया। यह काम भी मेरा अच्छा चला और इस समय आस-पास के गाँव में फलों का सबसे बड़ा व्यापारी मैं ही हूँ। सचमुच यह सब ना होता अगर वह भैंस ना चली गई होती क्योंकि उसी के कारण मैं लाचार था और उसी के कारण मैं कोई भी और काम नहीं करना चाहता था। उस भैंस के जाने के बाद मैंने नए रास्ते तलाशे जिससे मैं पैसे कमा सकता था और आज मैं एक बड़ा व्यापारी बन चुका हूँ।
अब शिष्य बोला, यह काम तो आप पहले भी कर सकते थे ? इस पर आदमी बोला- हाँ, कर सकता था। लेकिन तब मेरी जिंदगी बिना मेहनत के भी चल रही थी। मुझे कभी लगा ही नहीं कि मेरे अंदर भी इतना कुछ करने की क्षमता है तो मैंने कोशिश ही नहीं की। पर जब मेरी भैंस चली गई तब मुझे एहसास हुआ कि मैं कुछ दूसरा काम कर के भी पैसे कमा सकता हूँ,और अपनी पत्नी और बच्चों को अच्छी जिंदगी दे सकता हूँ। तब मैंने ठान लिया कि अब मैं जो भी करूंगा पूरी मेहनत के साथ और अपने दम पर करूँगा और इसीलिए आज मैं इस मुकाम पर पहुँचा हूँ।
साथियों, एक सवाल आप सबसे भी। याद कीजिए कि आपके पास भी कोई ऐसी भैंस तो नहीं है जो आपको एक बेहतर जिंदगी जीने से रोक रही है ? अगर ऐसा है तो अब देर मत कीजिये और उसकी रस्सी को फौरन काटिये,और फिर आजाद हो जाइए। आपके पास खोने के लिए बहुत कम चीजें हैं लेकिन अगर आप सफल होते हैं तो पाने के लिए पूरा जहान है।
किशोरी रमण
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very nice.....
वाह, बहुत प्रेरक कहानी।
वाकई बहुत सुंदर और प्रेरक कहानी।