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Writer's pictureKishori Raman

गर्लफ़्रेंड

Updated: Sep 19, 2021


आज मैं अपनी लघु-कथा प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसका शीर्षक है.......

गर्लफ़्रेंड

शर्मा जी ऑफिस से घर पहुंचे तो पत्नी हेमा ने जल्दी से उनके हाथ से ब्रीफकेस और टिफिन का डब्बा थाम लिया। शर्मा जी आराम से कुर्सी पर बैठ कर अपनी टाई के नॉट को ढीला करने लगे। पत्नी इसी बीच पानी का ग्लास लेकर आई। पानी पी कर उन्हें बड़ा सुकून मिला। पत्नी जूते के फीते खोलने लगी।


कपड़ा बदलते हुए शर्मा जी सोच रहे थे कि क्या यह वही घर है जहाँ रोज महाभारत मचा रहता था। पत्नी हेमा का दिमाग हमेशा चढ़ा रहता था। ठीक मुँह तो वो बात भी नही करती थी। लेकिन जब से माँ जी को यहाँ से 15 किलोमीटर दूर के अनाथालय में भर्ती कराया है तब से घर का माहौल शांत और खुशनुमा हो गया है। कुछ पैसे हर महीने अनाथालय में अवश्य जमा करवाना होता है लेकिन रोज के चख चख से तो छुटकारा मिल गया था।


एक दिन पति पत्नी दोनों चाय पी रहे थे तभी हेमा ने कहा -- अजी सुनते हो ,अपना बेटा अमृत आजकल बडा गुमसुम सा रहता है। न कोई फरमाइश न बाहर घूमने जाने की ज़िद। शर्मा जी खामोश ही रहे, फिर हेमा ही बोल उठी...कहीं अमृत को किसी लड़की से प्यार तो नही हो गया है ?


शर्मा जी बिफर पड़े.….क्या फालतू की बात करती हो। सोलह सत्रह साल का बच्चा भला क्या किसी लड़की के चक्कर मे पड़ेगा ?

हेमा मुस्कुराते हुए बोली - देखो जी ,अब आपका वाला जमाना नही है। अब बच्चे जल्दी समझदार हो जाते है और प्यार और गर्ल फ्रेंड के बारे में सोचने लगते हैं। आज कल तो सोशल मीडिया का जमाना है। नई पीढ़ी में गर्लफ्रैंड ,आउटिंग और पढ़ाई एक साथ चलता है। अभी उस दिन हम लोग चौधरी जी के बेटे आशीष के बर्थडे पार्टी में गए थे। आशीष भी तो सत्रह अठारह साल का है और इंटर में पढ़ता है। वहाँ उसकी गर्लफ्रैंड भी आई हुई थी और देखा था आपने कि किस तरह मिसेज चौधरी अपने बेटे के साथ उसकी गर्लफ्रैंड का भी परिचय गर्व से करा रही थी।

कुछ देर तक खामोश रहने के बाद हेमा बोली ,मेरा बेटा भी अगर किसी गर्लफ्रैंड को लेकर घर आता है तो मुझे कोई आपत्ति नही होगी। उल्टे इससे समाज मे मेरा मान और कद ही बढ़ेगा।


कुछ दिनों के बाद की बात है। शनिवार को अमृत तीन बजे तक कॉलेज से घर वापस आ जाता था। अभी करीब पाँच बज रहे थे और अमृत का पता नही था। हेमा ने उसे कॉल लगाया तो उसका मोबाइल फुल रिंग होने के बाद कट गया। कुछ देर के बाद हेमा ने अमृत के दोस्त राज को कॉल किया और पूछा ,क्या आज लेट तक क्लास चल रहा है ?

नही तो आंटी जी। आज तो क्लास तीन बजे ही समाप्त हो गया था और अमृत तो मेरे साथ ही कॉलेज से निकला था। क्या वह अभी तक घर नही पहुंचा है ?

हाँ बेटा वह अभी तक घर नही पहुँचा है। चिंतित हेमा ने बुदबुदाते हुए कहा ,छ बजने बाले है और वो अबतक घर वापस नही आया है।आज आने दो ...बताती हूँ उसे।

उसकी बात खत्म ही हुई थी कि दरवाजे पर अमृत दिखा जो घर मे प्रवेश कर रहा था।

अरे आज तुम क्यो लेट हो गए ? कहाँ रह गए थे तुम ?-- हेमा ने पूछा।

प्रश्न सुनकर अमृत सकपका गया। उसका चेहरा स्याह पड़ गया लगा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो |

हेमा ने मौके की नज़ाकत को समझ कर आगे कुछ नही पूछा और किचन में चली गई। कुछ नमकीन और एक कप चाय लेकर अमृत के कमरे में पहुँची। अमृत ख्यालो में खोया हुआ था और उसके हाथों में गिफ्ट का एक पैकेट था।

अरे , किसने दिया ये गिफ्ट और क्या है इसमें ?,हेमा ने पूछा।

कुछ तो नहीं .. बस यूं ही ...अमृत की जुबान लडखडाने लगी।

हेमा ने अमृत के हाथ से पैकेट लेकर उसे खोला ।उसमे कैडबरी का चॉकलेट और एक पुर्जा मिला जिस पर लिखा था - प्यार सहित।

हेमा चौक गई। उसने गहरी नजरो से अमृत को घूरा।अमृत डर और लज्जा से पानी पानी हो रहा था।

हेमा ने उस समय चुप रहना ही उचित समझा और उसके कमरे से बाहर निकल गई।


कुछ दिनों तक तो सब ठीक ठाक चलता रहा। हेमा ने महसूस किया कि अमृत उससे कटा कटा सा रहता है..….उससे बात करने से बचता है और अपने कमरे में अपने को पढ़ाई में ब्यस्त रखता है, न कोई शरारत न कोई फरमाइश।

उसने सोचा , शर्मा जी से बात की जाए पर यह सोच कर कि वे तो उसका ही मजाक उड़ायेंगे , वो खामोश रही। फिर उसने अमृत के एक क्लासमेट जो अमृत का सबसे करीबी था और जिसका मोबाइल नंबर उसके पास था उससे बात की और जानने का प्रयास किया कि अमृत का किसी लड़की के साथ चक्कर तो नही चल रहा है ?

उसके दोस्त ने इन्कार करते हुए कहा कि अमृत तो किसी लड़की की तरफ ठीक से देखता भी नही है फिर वह बात क्या करेगा?


एक शाम उसकी सहेली का फोन आया। बातो ही बातों में हेमा ने सहेली से अपने बेटे के गुम- सुम रहने के शिकायत की तो वह बोल उठी......अरे कल शनिवार को शाम करीब साढ़े पांच बजे मैंने अमृत को चिल्ड्रन पार्क में देखा था। उसके साथ कोई थी ...शायद कोई औरत।

हेमा ने पूछा औरत या लड़की ?

शायद लड़की ही हो। चुकी दूरी काफी थी और शाम का अँधेरा घिरने लगा था अतः ठीक से देख नही सकी। वैसे भी कोरोना के कारण मास्क और सोसल डिस्टेन्स मेन्टेन करने के चक्कर मे आजकल किसी को पहचानना मुश्किल होता है।

अरे, तुमने तो औरत कह के मुझे डरा ही दिया था कहकर हेमा जोर से हँस पड़ी।

इसपर उसकी सहेली बोली--आजकल नया जमाना है। धूर्त औरत सब पैसे ऐठने के लिए भोले भाले बच्चों को फँसाती है। अतः सावधान तो रहना ही चाहिए कह कर उसने फोन काट दिया।


यह सुनकर हेमा के दिल की धड़कन बढ़ गई उसके मन मे उथल पुथल मच गई। मन कहता ,नही...नही ,अमृत तो भोला भाला है, वह ऐसा तो कर ही नही सकता। मगर उसका चोर मन कहता , अगर ऐसी बात है तो वह बिना बताए क्यो पार्क गया ?

अमृत बाहर से खेल कर घर आया तो उसके शरीर पर कल शनिवार वाला ही ड्रेस था। उसने कपड़े बदले और पढ़ने बैठ गया।

माँ ने चुपके से उसके पैंट के जेब की तलाशी ली तो पार्क के एंट्री टिकट का अधकट्टी मिला । इसका मतलब उसकी सहेली ठीक कह रही थी यानी अमृत के पार्क जाने की बात पक्की हो गई।

रात को खाते समय माँ ने पूछ लिया--कल शनिवार को कॉलेज से लेट क्यों आये थे ?। कहाँ गए थे ?

अमृत का चेहरा सफेद पड़ गया। उसने हकलाते हुए कहा "कल शाम मैं अपने दोस्तों के साथ था"


अब हेमा का संदेह पक्का हो गया। जरूर कुछ बात है और उसका बेटा उससे छुपाना चाहता है।

रात को हेमा ने इसकी चर्चा शर्मा जी से की तो वे बोले.....अरे तुम औरतो को वहम की बीमारी होती है। सहेली ने कुछ कह दिया और तुम मान गई। अगर वह बिना बताए चिल्ड्रेन पार्क चला भी गया तो कौन सा अपराध कर दिया।


हेमा झल्ला उठी। बोली, तुम मेरी बात समझ नही रहे हो। यही उम्र है बच्चों के भटकने का। तुम समझने का प्रयास करो। कोई लड़की होती तो मान भी जाती पर कोई औरत थू....थू।

अगले शनिवार को फिर अमृत दोस्तो के साथ खेलने की बात कह कर घर से निकला। जब लौटने में लेट होने लगी तो हेमा का माथा ठनका। वह झट स्कूटी निकाली और चिल्ड्रेन पार्क की तरफ चल दी। अभी वह अपनी स्कूटी पार्किंग में पार्क ही कर रही थी कि अमृत को अपनी सायकिल पर तेजी से पार्क से निकलते देखा। मानो उसे बहुत जल्दी हो। वह अकेला ही था । शायद जो भी साथ रही हो वह वहाँ से जा चुकी थी। उसने अपनी स्कूटी स्टार्ट की और घर आ गई।

कुछ है देर में अमृत भी सायकिल से घर पहुँचा और पूछने पर बताया कि वह दोस्तो के साथ क्रिकेट खेल कर आ रहा है।


झूट पर झूठ। अब तो हेमा का बिश्वास पक्का हो गया कि कुछ तो गड़बड़ है। रात में शर्मा जी से गहन चर्चा हुई। यह भी निर्णय लिया गया कि अगले शनिवार को अमृत का पीछा करना है और उस औरत के साथ उसे रंगे हाथ पकड़ना है। उस औरत को इतना ज़लील करना है कि वह आगे किसी लड़के की जिंदगी खराब करने के बारे में सोचें भी नही।


अगला शानिवार आया। शाम को अमृत दोस्तो के साथ खेलने जाने की बात कह अपनी साइकिल लेकर घर से निकला। कुछ ही देर में उसके पीछे स्कूटी से उसके मम्मी पापा निकले। मास्क और हेलमेट से अपने को पूरी तरह ढके हुए।

अमृत ने पार्क के पार्किंग में साइकिल पार्क की, टिकट खरीदा और पार्क के अंदर चला गया।

हेमा ने टिकट काउंटर की तरफ बढ़ते हुए कहा। जल्दी से स्कूटी पार्क कर आओ। देर होने पर अमृत आंखों से ओझल हो जाएगा फिर उसे खोजने में दिक्कत होगी।

दोनों पार्क में घुसे। देखा अमृत सबसे अंत मे कोने वाली बेंच की तरफ बढ़ रहा है। वहाँ उस बेंच पर पहले से ही कोई बैठा है। चुकि बेंच का पिछला हिस्सा इनकी तरफ था और दूरी भी ज्यादा थी अतः कौन बैठा है पता नही चल रहा था।

सावधानी पूर्वक ,छिपते छिपते दोनों आगे बढ़े। दूरी घटी तो दृश्य कुछ साफ हुआ। उस बेंच पर शाल ओढ़े कोई औरत बैठी थी और उसका पीठ इन दोनों की तरफ था।अमृत भी उस औरत के पास जाकर बैठ गया।

तो सहेली बिल्कुल ठीक कह रही थी.....हेमा बड़बड़ाने लगी तभी शर्मा जी ने कहा . देखो शांत हो जाओ। यह सार्वजनिक स्थान है। यहाँ बात का बतंगड़ मत बनाओ, वरना उस बेशर्म औरत को तो कुछ नही होगा पर अपना बेटा शर्म और ग्लानि से टूट जाएगा।

दोनों दूर खड़े सोचते रहे कि अब क्या किया जाये।

बेंच के पीछे से दोनों के कंधे से ऊपर वाला हिस्सा नजर आ रहा था। कुछ देर में अमृत दिखाई नही दे रहा था। शायद वह औरत की गोद मे लेट गया था।

दोनों धीरे धीरे बेंच की तरफ बढ़े। हेमा ने तो गुस्से में पैर से सैंडल निकाल कर हाथ मे ले ली। वह बुदबुदा रही थी ...आज तो इस औरत की इतनी दुर्गति करूँगी कि जिंदगी भर याद रखेगी।

अब दोनों बेंच के बिल्कुल पास थे। उसका बेटा उस औरत की गोद मे सर रख कर लेटा हुआ था। शाल से अपने सर और बदन को ढके वह औरत उसके सर को सहला रही थी। उसके चेहरे पर मास्क भी था।


नजदीक पहुँच कर हेमा का गुस्सा फट पड़ा। नीच औरत...डायन ...तुझे मेरा बेटा ही मिला अपनी हवस शांत करने के लिए ,जोर से चिल्लाते हुए हाँथ के सैंडिल उसके पीठ पर दे मारी।

अमृत हड़बड़ा कर उठ बैठा। वह डर से थर थर कांप रहा था। उस औरत ने दर्द से कराहते हुए अपना चेहरा उठाया। शाल सर से सरक चुका था और मुँह पर से मास्क भी हट चुका था।

वह औरत कराहते हुए बोली, हाँ मारो मुझे.... और मारो।

और अमृत उससे चिपट कर चिल्ला उठा..दादी को मत मारो ,यह मेरे कहने पर मुझसे मिलने आती है

आश्चर्य चकित शर्मा जी के मुँह से इतना ही निकला--माँ ..तुम?

हाँ मैं ..वह औरत बोली ,तुम लोगो ने तो मुझे घर से निकाल कर मुझे अनाथालय में डाल ही दिया है, अब क्या अपने पोते से मिलने का अधिकार भी छीन लेना चाहते हो?

अमृत दादी से लिपट कर रो रहा था। हेमा के हाँथो में अभी भी सैंडल थीं और चेहरे पर आश्चर्य का भाव। शर्मा जी का चेहरा शर्म से झुका हुआ था.... और आंखों से आंसू भी बह रहे थे।


किशोरी रमण।


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3 Comments


Unknown member
Feb 09, 2022

bahut hi sundar....

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verma.vkv
verma.vkv
Aug 31, 2021

आज के परिवेश की जीवंत कहानी ।

बहुत सुंदर प्रस्तुति

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sah47730
sah47730
Aug 31, 2021

वाह! कहानी में वात्सल्य का प्यार,उत्कंठा (suspence)की रोचक प्रस्तुति है। जिसमें माता पिता को होने वाली नई पीढ़ी के प्रति स्वाभाविक चिंता साथ ही पुरानी पीढ़ी के प्रति बे-दर्दी के भाव, पारिवारिक शांति के लिए उनसे बनाई गई दूरी ,जो आज के परिवेश की आम घटना है प्रस्तुत की गई है।

:मोहन "मधुर"

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