आज हारे है वो तो
कल गुरुर भी टूटेगा
पिंजड़े में बंद तोता
अब जल्द ही छूटेगा
अब समझ में आएगा
जन आक्रोश क्या है
सपनो के मरनेका गम
भूखों का दर्द क्या है
झूठ को सच बताना
जनता को भरमाना
कैसे रोक सकेगा कोई
अब इंकलाब का आना
जब सता गूंगी बहरी हो
तब आलोचना जरूरी है
मिले न्याय और गरिमा
संविधान देशका प्रहरी है
न खुद पे अहंकार करें
धरती प्रकृति से प्यार करें
मानवता से बड़ा धर्म नहीं
सच्चाई को स्वीकार करें
किशोरी रमण
Bahut sundar rachna.
सुंदर रचना