वैसे तो गुस्सा आना आम बात है। जब भी हमे कोई बात बुरी लगती है या किसी का बर्ताव पसंद नही आता है तो हमे गुस्सा आ जाता है। पहले भी लोगों को गुस्सा आता था और आज भी लोगों को गुस्सा आता है, पर आज के इस भाग दौड़ भरी जिन्दगी में गुस्सा दिलाने वाले कारण बहुत बढ़ गए है और गुस्सा को बाहर निकालने के तरीके हमारे अहं और घमंड के चलते कम पड़ते जा रहे है। यही कारण है कि गुस्से से होने वाला नुकसान भी बड़ा होता जा रहा है। पहले हमारी सीमित दिनचर्या थी, सीमित लोगो एवं सीमित विचारो से सामना होता था अतः गुस्सा होने के कम मौके बनते थे और अगर गुस्सा आता भी था तो दोस्त यार या घर परिवार के लोगो से अपनी बात कह हम अपना गुस्सा निकाल लेते थे।
आज स्थिति उल्टी है। हम बस गुस्से वाली बात को लेकर बैठ जाते है। सुबह से लेकर सोने तक वही बात हमारे दिमाग मे घूमती रहती है। इस तरह से गुस्सा दिलाने वाले ब्यक्ति का कुछ नुकसान हो या न हो पर हम जरूर परेशान होते रहते है। हमने कई कहानियों में सुना है कि गुस्सा करना वैसा ही होता है जैसे कि जहर आप पिये और सोचें कि मर सामने वाला जाय।
इस संबंध में भगवान बुद्ध का एक प्रचलित किस्सा है जिसे मैं यहाँ प्रस्तुत करना चाहूँगा।
एक बार महात्मा बुद्ध एक गाँव मे उपदेश दे रहे थे। वे बता रहे थे कि क्रोध एक तरह का अग्नि है और क्रोध करना ऐसा है कि नुकसान क्रोध दिलाने वाले का नही बल्कि क्रोध करने वाले का होता है। क्रोध में ब्यक्ति दुसरो को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है लेकिन इस आवेश में ब्यक्ति खुद दुसरो से ज्यादा परेशान होता है। भगवान बुद्ध की ये बाते सभा मे बैठे एक क्रोधी ब्यक्ति को बिल्कुल अच्छी नही लग रही थी और उसे बुद्ध पर गुस्सा आ रहा था। भगवान बुद्ध तो प्रवचन क्रोध पर दे रहे थे पर उनका मन बिल्कुल शांत दिखायी पड़ रहा था। शांत बुद्ध को देखकर वह क्रोधी ब्यक्ति और क्रोधित हो उठा और उनके नजदीक जाकर उनके मुहँ पर थूक दिया। सारी सभा भड़क उठी और वहाँ अफरा तफ़री का माहौल बन गया। पर बुद्ध अभी भी शांत बैठे हुए थे। उन्होंने अपना चेहरा पोछा और उस युवक से पूछा " तुम्हे कुछ और कहना है "। इस बात पर वह ब्यक्ति वहाँ से चला गया ।
बुद्ध के शिष्य क्रोधित हुए और बुद्ध से पूछा- आपको गुस्सा नही आया ? बुद्ध ने बड़े प्यार से अपने शिष्यों को समझाया। वह ब्यक्ति बडा परेशान लग रहा था। हो सकता है कि वह कई परेशानियों से घिरा हुआ हो, और उसमें उसका कोई दोष नही हो।
अगली सुबह उस ब्यक्ति का गुस्सा शांत हो गया था और अब उसे पश्यताप हो रहा था। वह बुद्ध को खोजते उस गाँव मे गया जहाँ बुद्ध प्रवचन दे रहे थे। वह व्यक्ति बुद्ध के चरणों मे गिर पड़ा और रोने लगा और कहा -मैं वही दुष्ट इन्सान हूँ जिसने कल आपपर थूका था और आपका अपमान किया था। इस बात पर बुद्ध ने हँस कर कहा कि कल की बातें तो मै वहीँ छोड़ आया हूँ।मैं अगर क्रोध करता तो उससे तुम्हे कोई फर्क नही पड़ता, सिर्फ मेरा दिल दुखता। हर बुरी बात या घटना को याद रखा जाय तो जीवन और भविष्य दोनों ही ठहर जायेगें और परेशानियां और बढ़ती जायगी।
अतः हम कह सकते है कि किसी बात को दिल पे लेकर बैठ जाना किसी भी समस्या का हल नहीं है। इससे आप अपने को एक ही जगह बांध कर रखते है जबकि हमारा शत्रु बिना किसी परेशानी के घूमता रहता है। अतः आज से जब भी आपको गुस्सा आये इस बात का ध्यान रखे कि इसमें नुकसान आपका ही होगा। शारीरिक तथा मानसिक क्लेश के साथ साथ वर्तमान समय तथा भविष्य दोनों ही बर्वाद होगा। अतः अपने गुस्से पर काबू रखें और शांत रहे और फिर उसे भूल जायें।
किशोरी रमण
If you enjoyed this post, please like , follow, share and comments.
Please follow the blog on social media.link are on contact us page.
www.merirachnaye.com
top of page
मेरी रचनाएँ
Search
Recent Posts
See All3 Comments
Post: Blog2_Post
bottom of page
so nice....
प्रस्तुती अच्छी और विषय उपयोगी है। बहुत सारे लोगों ही नहीं अधिकांश लोगों को अज्ञानतावश गुस्सा आता है। महात्मा बुद्ध का ज्ञान तो सर्वोपरी है। इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है।
:-- मोहन"मधुर"
सच है। कभी कभी हम अनजाने में ऐसी गलती कर देते है और अपना नुकसान होता है ।सुंदर प्रस्तुति।