आज एक संस्मरण सुनाता हूँ , चरकू साहब की।
चरकू साहब का सेलेक्शन केनरा बैंक में कृषि प्रसार पदाधिकारी के रूप में हुआ था। स्टाफ ट्रेनिंग सेंटर गरियाहट कोलकाता में दो सप्ताह के ट्रेनिंग के बाद तांत नगर शाखा में जॉइन करने का आदेश मिला। तांत नगर शाखा चाईबासा से 20 किलोमीटर दूर ओडिसा बॉर्डर के पास था। चूँकि वहाँ रहने की ब्यवस्था नही थी अतः सब लोग चाईबासा से ही ऑपरेट करते थे। चाईबासा में बंगला भाषा और तांत नगर में "ओड़िया" या "हो " भाषा बोली जाती थी। वहाँ गाँव मे "ओड़िया" और "हो" आदिवासी लोग रहते थे।
यह 31 अगस्त 1984 का दिन था जब चरकू साहब ने तांत नगर शाखा में अपना योगदान दिया था। उस समय पूरा इलाका उपद्रव ग्रस्त था। वहाँ के लोकल आदिवासी लोग अलग "कोल्हानिसत्तान" देश की मांग कर रहे थे। चूँकि स्थानीय सांसद इस आंदोलन का विरोध कर रहे थे इसलिए आपस मे टकराव और खून खरावा हो रहा था। हाँ ये भी सच था कि वे किसी बाहरी व्यक्ति को तब तक कोई नुकसान नही पहुंचाते थे जबतक उन्हें शक न हो कि ये ब्यक्ति प्रशासन या पुलिस का आदमी है। शाखा के सीनियर मैनेजर श्री पादरई साहब थे तो गुजराती पर चाईबासा शाखा से प्रोमोशन पर तांत नगर शाखा आये थे और चाईबासा में काफी दिनों से रह रहे थे अतः काफी अनुभवी थे और स्थानीय समस्याओं से वाकिफ़ थे। चूँकि तांत नगर में शाखा के लिए कोई उपयुक्त भवन उपलब्ध नही था अतः ब्लॉक बिल्डिंग में ही दो कमरो में शाखा खुला था। ब्लॉक बिल्डिंग एक उजाड़ पथरीले इलाके में अवस्थित था जहाँ अगर नामक भी चाहिए तो दो किलोमीटर चलना होता था। शाखा में दो बार डकैती हो चुकी थी अतः शाखा को लोहे के ग्रिल से घेर दिया गया था तथा ग्राहक खिड़की से ही अपना काम करवाते थे।
कुछ दिनों के बाद चरकू साहब आस पास के गाँव का भ्रमण करने की इच्छा सीनियर मैनेजर से ब्यक्त की ताकि कुछ कृषि से सम्बंधित ऋण दिए जा सके और टारगेट पूरा हो सके । चूँकि ट्रेनिंग के दौरान चरकू साहब को बताया गया था कि अगर टारगेट नहीं हुआ तो प्रोबेशन पीरियड बढ़ जायेगा। सीनियर मैनेजर चरकू साहब को लेकर प्रखंड विकास पदाधिकारी जो खुद एक आदिवासी थे के कक्ष में गये और चरकू साहब को मिलाया। उन्होंने चरकू साहब को बताया कि आपके मैनेजर साहब को सब मालूम है। अभी करीब एक महीना पहले बगल के मंझरिया ब्लॉक को करीब तीन सौ तीर धनुष से लैस आदिवासी लोगो ने घेर लिया था अतः पुलिस को गोली चलानी पड़ी थी जिसमे इक्कीस लोग मारे गए थे। लोगो के धर पकड़ के लिए अभी भी पुलिस गाँव मे जा रही है।अतः अभी गाँव मे जाना ठीक नही है। हाँ अगर जाना अतिआवश्यक हो तो आप मुझसे कहेगें। मैं आपको ब्लॉक जीप,और फ़ोर्स उपलब्ध कराऊंगा ।
इसके करीब एक महीने के बाद मंडल कार्यालय राँची से फोन आया और एक भी कृषि लोन नही वितरित होने के कारण चरकू साहब को काफी डांट सुननी पड़ी। चरकू साहब ने एक गाँव के विजिट का प्रोग्राम बनाया और गाँव वालों को एक दिन पहले खबर भिजवा दी। प्रखंड विकास पदाधिकारी महोदय ने साथ मे ब्लॉक कृषि पदाधिकारी को लगा दिया और जीप और फ़ोर्स के ब्यवस्था कर दी। चरकू साहब जब गाँव मे पहुँचे तो वहाँ एक भी ब्यक्ति दिखाई नही पड़ा। एक बूढ़ी औरत ने बताया कि जीप आता देख सब लोग गाँव छोड़ कर भाग गए है। हार कर चरकू साहब वापस आ गये |
दूसरे दिन गाँव का वह ब्यक्ति शाखा में आया जिसको चरकू साहब ने गाँव मे अपने आने की सूचना भिजवाया था। चरकू साहब उसको देखते ही गुस्से से बोले, अरे...कल तुम लोग कहाँ थे ?
मैं तो वहीँ था... पेड़ पर छिपा हुआ। असल मे जब अपकी जीप आ रही थी तो हमारे लोगो ने पुलिस जीप समझ कर ढोल पिट कर (ड्रम बीटिंग) कर सबको सतर्क कर दिया और सब लोग या तो भाग गए या कहीं छुप गये। मैं भी एक पेड़ पर छुपा हुआ था। उसने चरकू साहब को समझाया कि अगर गाँव मे आपको आना है तो अकेले आये, प्रशासन की जीप पर पुलिस के साथ नही।
चरकू साहब के सामने धर्म- संकट उत्पन्न हो गया। प्रबंधक महोदय अकेले जाने नही देते और अगर किसी के साथ जाते तो गाँव वाले नहीं मिलते थे। मंडल कार्यालय से कृषि लोन बाँटने का प्रेसर था वो अलग।
अब चरकू साहब ने कुछ करने की सोची। शाखा का गार्ड सुंडी जी जो रिटायर आर्मी मैन था (जिसे अभी गन नही मिला था) और आदिवासी भी था उससे बात की तो वह उनके साथ मोटरसाइकिल से गाँव चलने को राजी हो गया। चरकू साहब को मालूम था कि मैनेजर साहब बृहस्पतिवार को लंच के बाद तांत नगर हाई स्कूल जाते है । वे टीचर लोन के लिये आवश्यक फार्म अपने साथ ले जाते है और प्रपोजल तैयार करते है। फिर चार बजे तक वापस आ जाते है।
तो बिना प्रबंधक और ब्लॉक स्टाफ को बताये चरकू साहब ने एक बृहस्पतिवार को गाँव का प्रोग्राम बना लिया। हालाँकि शाखा के अन्य स्टाफ को बता दिया पर इसे गुप्त रखने का निवेदन किया जिसे सब स्टाफ ने मान लिया। प्लान था कि मैनेजर साहब के आने के पहले ही वापस लौट आना है। करीब एक हप्ते पहले ही शाखा में फील्ड विजिट के लिये एक नई राजदूत मोटरसाइकिल खरीदी गई थी और चरकू साहब ने भी मोटरसाइकिल नई नई ही चलानी सीखी थी। तो चरकू साहब सुंडी जी को लेकर नई मोटरसाइकिल से गांव पहुँचे। करीब पच्चीस छब्बीस लोग उपस्थित थे। काफी बात हुई पर लोन लेने के लिए कोई तैयार नही हुआ। हाँ, आगे बैंक में आने और खाता खुलवाने का भरोसा जरूर दिया। पर आते समय मोटरसाइकिल स्टार्ट ही नहीं हो रही थी चरकू साहब और सुंडी जी किक मारते मारते थक गए । गाँव वालो ने भी कोशिश की पर स्टार्ट नही हुआ। अंत मे ये निर्णय हुआ कि इसे ठेल कर बगल के गाँव मे साइकिल मिस्त्री के पास ले चला जाय। साइकिल मिस्त्री तक गाँव वाले ही मोटरसाइकिल को ठेल कर ले गये। वहाँ मिस्त्री ने प्लग खोल कर कार्बन साफ किया और तब मोटरसाइकिल स्टार्ट हो गया पर इस चक्कर मे वापस लौटते साढ़े पाँच बजे गये।
उधर जब लेट होने लगा तो स्टाफ लोग भी चिंतित हो उठे। चार बजे जब मैनेजर साहब हाई स्कूल से वापस आये तो चरकू साहब को न देखकर उनके बारे में पूछा | इसपर स्टाफ ने उन्हें सब बात सच सच बता दी। जब पांच बज गये और चरकू साहब नही लौटे तो प्रबंधक महोदय चिंतित हो गये और इसकी सूचना प्रखंड विकास पदाधिकारी महोदय को दी। प्रखंड विकास पदाधिकारी महोदय घबरा गए और बोले लगता है चरकू साहब किडनैप हो गये। उन्होंने इसकी सूचना थाने और जिला प्रशासन को दिया। वायरलेस से इसकी सूचना जिले भर में फ़्लैश होने लगा कि एक बैंक स्टाफ किडनैप हो गए है। मैनेजर साहब ने मंडल कार्यालय राँची को खबर करने के लिए तांत नगर पोस्टऑफिस में ट्रंक कॉल बुक कराया पर लाइन नही मिल पाने के कारण मंडल कार्यालय से बात नही हो पा रही थीं |
और तभी चरकू साहब सुंडी जी के साथ पसीने से तथपथ शाखा के पास मोटरसाइकिल से पहुंचे। सबको बाहर चिंतित मुद्रा में खड़ा देख कर समझ गए कि मामला कुछ तो गड़बड़ है। उन्होंने अपनी घड़ी देखी , करीब पौने छ बज रहे थे। अब आप सब कल्पना कीजिए की चरकू साहब को कितनी डांट पड़ी होगी। हाँ, प्रखंड विकास पदाधिकारी महोदय ने प्रशासन को बैंक ऑफिसर के सुरक्षित वापस आ जाने की खबर को वायरलेस से फ़्लैश करवाया। मैनेजर साहब ने मंडल कार्यालय राँची के लिए जो ट्रंक कॉल बुक कराया था उसे कैंसिल कराया।
अब चरकू साहब के बारे में कुछ जानिये। वहाँ के गाँव वालों ने ये नाम दिया था जिसका स्थानीय भाषा मे मतलब होता है "गोरा साहब"।
तो आप अवश्य ही जानना चाहेगें चरकू साहब का असली नाम।
चरकू साहब का असली नाम है "किशोरी रमण"।
किशोरी रमण।
BE HAPPY.....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE
If you enjoyed this post, please like , follow, share and comments.
Please follow the blog on social media. link are on contact us page.
www.merirachnaye.com
Atti Sundar kahani....
वाह! बहुत सुन्दर व याद रखने लायक संस्मरण। बैंक अधिकारी को ग्रामीण क्षेत्र में इस तरह की परिस्थितियों का अक्सर सामना करना ही पड़ ता है। कहानी की प्रस्तुति भी अच्छी है।
:-- मोहन"मधुर"
वाह, बहुत सुंदर संस्मरण ।