हम सब केवल अपने लिए जीते हैं । अपने ऐशो -आराम, अपने नाम और प्रतिष्ठा के लिए सारी जिंदगी गुजार देते हैं। पर कभी कभी जिंदगी औरो के लिये भी तो जी कर देखिए। किसी गिरते हुए को सहारा दीजिये, नवांकुरों और मुरझाते बचपन को सिंचित कीजिये। फिर देखिए ,ये दुनिया स्वर्ग बन जायेगा और चारो तरफ सुख शांति और भाईचारे का साम्राज्य होगा। इन्ही सब विचारो पर आधारित है आज की कविता जिसका शीर्षक है......
जिन्दगी
ये जिन्दगी हँसने का नाम है
ये जिन्दगी रोने का नाम है
यारों सच पूछो तो ये जिन्दगी
कुछ पाने और खोने का नाम है
कुछ खोने और पाने की चिंता में
हम सब नाहक इसे गवांते है
जिंदा रहते हैं सिर्फ अपने लिए
औरो के लिए मुर्दा बन जाते है
पर ऐसा जीना भी क्या जीना
जहाँ औरो की कोई बात न हो
वह सफर भी क्या सफर है यारो
जिसमे अपना कोई साथ न हो।
अगर तुम थामो हांथ किसी गिरते का
वह कल तुम्हारा भी तो सहारा होगा।
आज अगर तुम सींचो उगते पौधों को
कल खिलने वाला फूल तुम्हारा होगा।
आओ ले संकल्प कि अच्छा ही करेंगे
जिन्दगी को हर हाल में जिंदा ही रखेंगें
ढेर सारी जिंदगी खुद के हिस्से में सही
थोड़ी सी जिंदगी औरो के लिए जीयेंगे।
किशोरी रमण
very nice....