top of page
  • Writer's pictureKishori Raman

# जो जीता, वही सिकंदर #


यह बात तो सही है कि विकास के लिए प्रतियोगिता और प्रतिद्वंदिता का होना आवश्यक है क्योंकि यही प्रतियोगिता हमारे संघर्ष और मौलिकता की धार को तेज करता है और एक दूसरे से आगे निकलने को प्रेरित भी करता है। यह प्रतिकूल परिस्थितियों और तमाम तरह की कठिनाइयों में भी आगे बढ़ने और लक्ष्य को पाने का हौसला देता है। पर जब यही प्रतियोगिता षड्यंत्र- पूर्ण प्रतिद्वंदिता में बदल जाए फिर तो सारा खेल ही विकृत हो जाता है। किसी को धकेल कर आगे बढ़ना,अपनी चालाकियों से किसी के राह में कांटे बिछाना ताकि वह जीत न सके, इसके लिए सारे हथकंडे आजमाना आज तो खेल का हिस्सा ही बन चुका है। अक्सर ही हम सुनते और पढ़ते हैं कि शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए या फिर नौकरी के लिए आयोजित प्रतियोगिता परीक्षा में धांधली की गई। पैसे, पैरवी और दबंगई के बल पर अपात्र व्यक्तियों का चयन हो गया जबकि योग्य और सुपात्र लोग मुंह ताकते ही रह गए। राजनीति और सामाजिक सरोकारों में भी यह सब गोरखधंधा बड़े जोर शोर से चल रहा है। यहाँ तो यह जुमला आज आम है कि बिना गलत हथकंडो के न तो आप चुनाव जीत सकते हैं और ना ही सामाजिक पहचान के कोई मुकाम हासिल कर सकते हैं। पर जब आप इन छल कपट का सहारा लेकर जीत जाते हैं, मंजिल पा लेते हैं और फिर मंजिल पर बैठकर सुस्ताते हैं, अतीत में जाते हैं, तो अपने द्वारा किया गया षड्यंत्र और बोला गया झूठ क्या खुद आपको नहीं तोड़ता है ? क्या आपका जमीर आपको ताने नहीं देता है ? औरों की नजरों में तो आप ऊपर, बहुत ऊपर उठे होते हैं पर खुद की नजरों में आप क्या गिरे नहीं होते हैं ? मैं जानता हूं, कुछ लोग कहेंगे कि मोहब्बत और जंग में सब जायज है। क्योंकि यहाँ हम सब प्रतियोगी हैं अतः एक की जीत तो दूसरे की हार के मार्ग को प्रसस्त करेगी ही। अतः इस तरह के बहस का कोई फायदा नहीं है कि जीत किसकी हुई और कैसे हुई ? बस महत्व ये रखता है कि जीत हुई है यानी जो जीता वही सिकंदर। पर फिर भी जरा रुक कर सोचिए, क्या जीतने के लिए छल करना जरूरी है ? क्या दूसरों के हिस्से की हक-मारी करना और वह भी चालाकी और झूठ से क्या उचित है ? अपने अंत समय में जब सिकंदर अपनी विजय यात्रा को अधूरी छोड़ भारत से वापस अपने वतन लौट रहा था तो वह बहुत ही निराश और हताश था। क्योंकि उसे अपने अंतिम दिनों में यह भान हो गया था कि उसका जो विश्व विजेता का अहम और घमंड है वह सब मिथ्या है और अब वह शायद अपने वतन जिंदा भी न पहुंच पाए। और जब वह मरा तो बस उस विश्व विजेता को दफनाने के लिए दो गज जमीन ही काफी थी। उसके सारे धन दौलत कीर्ति, गुरुर सब यहीं के यहीं रह गए । वह खाली हाथ ही इस दुनिया से विदा हो गया। तो एक बार जरूर सोचिए कि जितने के लिए हम षड्यंत्र और झूठ का सहारा क्यो लें ?

किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow, share and comments. Please follow the blog on social media. link are on contact us page. www.merirachnaye.com




92 views4 comments
Post: Blog2_Post
bottom of page