दो शब्द अपनी कविता के बारे में ।
बचपन या किशोरावस्था का प्यार बड़ा पवित्र और भोला भाला होता है। न कोई छल-कपट, न कुछ पाने की आशा और न ही कुछ खोने का भय । बस मन करता है कि अपना सबकुछ किसी पर न्योछावर कर दूँ।
पर ज्यो ज्यो उम्र बढ़ता है तो बचपन का भोलापन कहीं पीछे छूट जाता है और मन मे आने लगता है कुछ पाने की इच्छा, किसी से कुछ छीन लेने का खुराफाती विचार।
मन के इन्ही सब भाव एवम बिचारो को अपनी कविता के माध्यम से अभिब्यक्त करने का प्रयास किया है।
दर्पण सा दिल उनकी हाथों कीमेहंदी का लाल रंगजब छूट गया मेराभोला दर्पण सा दिल हाय चटक करटूट गया
प्यार हमारा रेशम -रेशम भाव हमारे केसर चंदन सृष्टि की ये कोमलताये जिनका हम करते है बंदन निर्मल मन और चंचल बातें कहाँ नजाने छूट गया मेरा भोलादर्पण सा दिल हाय चटक कर टूट गया
पलको में खुशियो का खजाना कदमो में सिमटा है जमाना सागर की लहरों पे चमके इन्द्रधनुष सा प्यार सुहाना बात बात पे प्यार जताना जब से उनका छूट गया मेरा भोलादर्पण सा दिल हाय चटक कर टूट गया
महके ज्यो हो रात की रानी छलके ज्यो आंखों में पानी उनकी जुल्फों के साये की छाव लगे जानी पहचानी छुई मुई बन के शर्माना जब से उनका छूट गया मेरा भोलादर्पण सा दिल हाय चटक कर टूट गया
उम्र बढ़ी क्या बात हो गयी जीवन बस खुराफात हो गयी बचपन की सब मीठी बातें यादो की सौगात हो गयी उनकीआँखों से बचपन का ख्वाब सुहाना छूट गया मेरा भोला दर्पण सा दिल हाय चटक कर टूट गया
किशोरी रमण
very nice...
Very near to the truth and heart.
Very nice gazal.
Very nice. Kishori g you are simply great.
वाह, बहुत सुंदर कविता ।