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Writer's pictureKishori Raman

" दिखावा क्यो ?"



आज करीब तीन सालों के बाद वर्मा जी से मिलना हुआ। मॉर्निंग वॉक में हम दोनों अनायास ही आमने सामने आ गए।अब से पहले होता यूँ था कि वह मुझे देखते ही कन्नी काट जाते थे पर आज न जाने क्यों हाथ जोड़कर बड़ी आत्मीयता से मिले। हालचाल पूछने पर बड़े ही करुण स्वर में बोले--भाई साहब, बस ठीक ही हूँ और आपकी वाजिब सलाह न मानने का खामियाजा आज तक भुगत रहा हूँ। मुझे तीन साल पहले की घटना याद आ गई। वर्मा जी मेरे मित्र हैं। उन्हें अपनी बेटी की शादी करनी थी। शादी खूब धूमधाम से होनी चाहिए, ऐसा मौका रोज रोज थोड़े ही आता है, सब की इस राय के विपरीत मैंने उन्हें फालतू के खर्चों एवं दिखावा से बचने की सलाह दे डाली थी। और तभी से वह मुझसे नाराज चल रहे थे। आज जब वह मिले तो उनके हाव- भाव और बातों से लगा कि शादी में लिए गए कर्जो और बकायेदारों के तागादो ने उन्हें तोड़ कर रख दिया है। उनके चेहरे पर पछतावा साफ झलक रहा था। मैं भला क्या कहता ? यह केवल वर्मा जी के साथ ही नहीं बल्कि हमारे समाज में अधिकतर लोगों के साथ हो रहा है। अथाह पैसे वाले धन्ना सेठ अपने बाथरूम की सजावट पर लाखों खर्च कर सकते हैं, पर बाप दादा या पुरखों की मेहनत और पसीने से अर्जित की गई संम्पत्ति और जमीन बेचकर या फिर उन्हें गिरवी रख कर दिखावा करना कहाँ तक उचित है ? और आखिर दिखावा किससे करना है ? क्या लोग हमारी हैसियत और हमारी स्थिति को नहीं जानते हैं ? क्या इन फिजूल के खर्चो के बाद हमारे बारे में लोगों की धारणा बदल जाएगी ? या लोग हमें मालदार और इज्जतदार का दर्जा देने लगेंगे ? आज तो चाहे पिता का कुर्ता कई जगह से फटा हो, माँ के पास कोई ढंग की साड़ी ना हो, पर बेटा सरकारी किरानी बनते ही दहेज के रूपयों और गिरवी रखी जमीन के बदौलत ड्रोन से वीडियोग्राफी करवाएंगे, भारी और गोटे जड़ी शेरवानी पहनेंगे भले ही उसे जिंदगी में दोबारा न पहनना हो, पर अपने रिश्तेदारों या पड़ोसियों के लड़कों से भला क्यों पीछे रहेंगें ? बेटी कभी पार्लर गई हो या ना गई हो पर शादी में बेटी के लिए सबसे महंगा पार्लर बुक करायेगें। एक दिन की राजकुमारी बनने का बेटी का शौक तो पूरा हो जाता है पर बाप कर्ज के बोझ से दबा कर्ज़दारों और पड़ोसियों से जीवन भर नजरे चुराता फिरता है। आज हमारे समाज में लोग औरों को यह दिखाना चाहते हैं कि मुझ से बड़ा कोई नहीं,मुझ से अच्छा कोई नही। और इसी दिखावे में लोग शादी ब्याह या अन्य सामाजिक आयोजनों में फिजूल और फालतू के पैसे खर्च करते हैं। एक तरफ हम दहेज का विरोध करते हैं दूसरी तरफ खुद इस तरह की फिजूलखर्ची और दिखावा को बढ़ावा देते हैं पहले ऐसा सोचा गया था कि जैसे-जैसे समाज में शिक्षा का प्रसार बढ़ेगा, लोग शिक्षित होंगे, जागरूक होंगे तो इस तरह के दिखावे और फिजूलखर्ची अपने आप रुक जाएगी। पर आज तो यह पहले से भी ज्यादा बीभत्स रूप लेता जा रहा है। आज हमारे देश में लाखों लोग या तो आधे पेट खाकर सोते हैं या फिर भूख और कुपोषण के शिकार हो मर जाते हैं। उस माहौल में खाने की बर्बादी अक्षम्य अपराध से कम नहीं है। आज तो शादी शादी ना होकर इवेंट मैनेजमेंट हो गया है। खर्च बढ़ाने वाले नए-नए आइटम, नए-नए प्रचलन और रिवाज जुड़ते जा रहे हैं। पंडाल से बाहर आने के बाद शायद ही लोगों को याद रहता होगा कि दूल्हा दुल्हन ने किसके डिजाइन किए कपड़े पहने थे ? खाने की मेनू में क्या-क्या आइटम था ? या पंडाल की सजावट कैसी थी ? कोरोना बीमारी ने हमे लाख जख्म दिए हो पर इसने हमे कुछ सिख भी दिए है। इसने हमे बताया है कि कम लोगो और कम खर्चो में और बिना दिखावे के भी शादी और अन्य सामाजिक आयोजन हो सकते है। एक बेटी के बाप जो मेरे मित्र भी है ने मुझे बताया कि चुकी कोरोना के कारण दो सौ मेहमान के बदले कुल पच्चीस मेहमान ही शामिल हो पाए अतः उनके करीब पाँच लाख रुपये बच गए( होटल का खर्च लड़की वालों को ही देना था) अब सवाल ये है कि महामारी ने जो विकल्प हमे दिखाया है क्या उसे हम आगे भी जारी रख पाएंगे ? अगर शादियाँ सादगीपूर्ण और कम खर्चो में होने लगे तो लोग बेटियों को बोझ समझना छोड़ देंगें। किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow,share and comments. Please follow the blog on social media.link are on contact us page. www.merirachnaye.com




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2 Comments


Unknown member
Jul 09, 2022

Very nice👍...

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verma.vkv
verma.vkv
Jun 24, 2022

वाह, बहुत ही सही प्रश्न उठाया है।

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