शाम पूरी तरह ढल चुकी थी। गहरा अंधेरा छाने लगा था। तथागत बुद्धा ने अपने सभी शिष्यों को विश्राम करने का आदेश दिया। सभी ने बुद्ध के आदेश का पालन किया और विश्राम करने के लिए उचित स्थान का चुनाव कर लिया। इससे पहले कि सभी निद्रा में लीन होते बुद्ध को एक अद्भुत कथा याद आ गई जो उन्होंने अपने शिष्यों को सुनाई।
यह कहानी तब की है जब पृथ्वी पर हर जगह प्रकाश नहीं था। अग्नि नहीं थी। चारों ओर अंधेरा था। एक गांव के लोग सदैव अंधकार में ही रहते थे लेकिन फिर भी उनके मन में अंधेरे को दूर करने की इच्छा थी। लोगों ने बहुत उपाय किए। मंत्र श्लोक पढ़े। बड़े बुढो की सलाह ली। जब सब बेकार चला गया तो एक दिन बैठकर अंधेरा भगाने पर सामूहिक चर्चा की गई। उस बैठक में आम सहमति से फैसला हुआ कि सब लोग अंधेरे को टोकरी में भर-भर कर उसे गहरी खाई में डाल दें। एक न एक दिन तो उसका अंत होकर रहेगा। यह बात इतनी उचित लगी कि गांव के सारे लोग अंधेरों को टोकरियों में भर-भर कर खाई में फेकने लगे। दिन, महीने, साल और यहां तक कि युग बीत गए। पीढ़ियाँ दर पीढ़ियाँ टोकरी भर भर कर अँधेरे को खाई में फेंकती रही लेकिन न तो अंधेरा गया और ना ही वह खाई ही भरी। लोग ऊब गए, हार गए। साल दर साल हर व्यक्ति अंधेरों को टोकरी में भर भर कर फेंकता रहा और अंधेरे को फेंकना एक प्रथा बन गई। फिर एक नई पीढ़ी आई और उसे यह रिवाज निरर्थक लगी। उस पीढ़ी का एक नौजवान एक दूसरे गांव की सुन्दरी से प्यार करने लगा। वह उसकी दुल्हन बनकर उसके गांव में आ गई। पहले ही दिन उसकी सास, ननद, देवर, जेठानी सब उसके पीछे पड़ गए कि गृह-प्रवेश बाद में होगा पहले पांच टोकरी अंधेरा भरकर उस खाई में फेको। वह नई दुल्हन हँसने लगी। उसने अपने वस्त्रों की गाँठ में से एक सफेद चीज निकाली। अपने मायके से लाया दीपक निकाल कर दो पत्थर रगड़कर अग्नि प्रज्जवलित की। दीया, बाती,तेल और अग्नि के मेल से उजाला हो गया ।लोग देखते ही रह गये। दीया जला और अंधेरा गायब हो गया। उस दिन से उन लोगों ने अंधेरा को फेंकना छोड़ दिया क्योंकि वे लोग दीपक जलाना सीख गए थे।
आप भी दीपक जलायें, बाहर के प्रकाश के लिये भी और अंदर के प्रकाश के लिए भी।
किशोरी रमण
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कहानी अच्छी लगी। टोकरी में अंधेरा कैसे भरा यह समझ से बाहर है।
Beautiful.....
Bahut hi Sundar.....
वाह, बहुत सुंदर प्रस्तुति ।