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  • Writer's pictureKishori Raman

दीवाली के बाद का सच

Updated: Nov 13, 2021


साफ-सफाई और प्रकाश का पर्व तो बीत गया पर अपने पीछे छोड़ गया है धुँए और बारूद की गंध वाली धुंध की मोटी चादर। वायु गुणवत्ता सूचकांक गंभीर श्रेणी में चला गया है। हवा की गुणवत्ता खराब होने से लोगों को गले में जलन और आंखों में पानी आने की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। यानी दिवाली की जो रात सुंदर और प्रकाशवान थी वही दूसरे दिन ही काली हो गई। आखिर क्यों हुआ ऐसा ? जो लोग पर्यावरण और स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं और कई सालों से पटाखों से होने वाले नुकसान के बारे में हमें चेता रहे है , लगता है हमनें उनकी बातों को अनसुना कर दिया है। आज की स्थिति देखकर ऐसा नहीं लगता कि हम लोग अभी भी सतर्क हो पाये है। दिवाली का मूल उद्देश्य लोगों के जिंदगी में धन, धान्य खुशी और प्रकाश से भरना है न की इसके दूसरे दिन सड़कों पर पटाखों के अवशेष की गंदगी, और हवा में जानलेवा प्रदूषण भरना। हम सब जानते है की कोरोना बीमारी ने हमारे लाखो लोगों को सांस की बीमारी दी है और उनके फेफड़ो को कमजोर कर दिया है। ऐसे लोगो के लिए बारूद वाली हवा जानलेवा है। आखिर हम सबमें पटाखों से इतना मोह क्यों है ? जबकि दिवाली के इतिहास की बात की जाए तो इसमें पटाखा छुड़ाने का कहीं जिक्र ही नहीं है। यह तो सब बाजारवाद और दिखावे की प्रवृत्ति का परिणाम है। वैसे केवल दिवाली ही क्यों ? बाजारवाद एवं दिखावे के चपेट में तो हमारे सारे पर्व त्यौहार आ चुके हैं। बाजारवाद एवं औद्योगिकीकरण के करण प्रकृति से हमारा सामंजस्य बिगड़ गया है जिसका परिणाम जलवायु परिवर्तन के रूप में सर्वत्र दिख रहा है। आज त्योहारों के असली उद्देश्य और उनकी नैसर्गिक खूबसूरती कहीं पीछे छूटता जा रहा है। इसके पीछे पूरा का पूरा बाजारीकरण व्यवस्था एवं स्वार्थी लोग लगे हुए हैं। अगर हम अपने उत्सवों और त्यौहारों को संकीर्ण मानसिकता एवं बाजारवाद की व्यवस्था से बचा पाए तभी कल वाली हमारी दीवाली उजली होगी। किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow, share and comments. Please follow the blog on social media. link are on contact us page. www.merirachnaye.com




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