इस दुनिया में मोह-माया ही सभी दुखों का मूल कारण है। किसी चीज से अपने को इतना न जोड़े कि उसके खो जाने से आपको अपार दुख हो। इस दुनिया में कोई भी चीज हमेशा के लिए नहीं है। अगर हम खुद को किसी भी चीज या किसी इंसान से जोड़ देते हैं तो हमें तब दुख होता है जब वह चीज या इंसान हमें छोड़ कर चला जाता है। भगवान बुद्ध ने बताया हैं कि शान्ति पाने का एक ही तरीका है और वह है, मन में किसी के लिए जुड़ाव का ना होना यानी नन-अटैचमेंट। इस दुनिया में सब कुछ केवल एक भ्रम है। इस भ्रम से अपने लिए क्या चुनते हैं यह आप पर निर्भर करता है क्योंकि जैसा आप अपने जीवन को देखना शुरू कर देंगे यह जीवन वैसा ही बन जाएगा। इस सम्बंध में भगवान बुद्ध के उपदेशों पर आधारित एक कहानी प्रस्तुत है।
एक दिन एक जवान आदमी बुद्ध से मिलने आता है और उनसे कहता है कि उन्हें शिक्षा दें लेकिन आसान भाषा में ताकि वह उन्हें समझ सके। बुद्ध ने उस आदमी से पूछा- क्या तुम्हारा कोई बेटा है ? जवान ने कहा हाँ, हमारा एक बेटा है। फिर बुद्ध ने पूछा, क्या आपके भाई का कोई बेटा है ? जवान ने कहा हाँ, मेरे भाई का भी एक बेटा है। बुद्ध ने पूछा क्या तुम्हारे पड़ोसी का कोई बेटा है ? इस पर उस जवान ने कहा हाँ, मेरे पड़ोसी का भी एक बेटा है। बुद्ध फिर पूछते हैं कि कोई ऐसा इंसान जिसे तुम नहीं जानते हो, क्या उसका भी बेटा है ? इस पर वह नौजवान बोलता है, हाँ महान बुद्ध, एक ब्यक्ति है जिसे मैं नही जानता उसका भी एक बेटा है।
अब बुद्ध पूछते हैं कि अगर तुम्हारे बेटे की मौत हो जाती है तो तुम्हें कैसा लगेगा ? तुम्हें कितना दुख होगा ? इस पर वह जवान आदमी कहता है कि मेरे दुख का कोई अंत नहीं होगा। मुझे ऐसा लगेगा कि मेरी दुनिया ही उजड़ गई है। मैं उसकी मौत के बाद कैसे जिंदा रह पाऊंगा ? अब बुद्ध पूछते है कि अगर तुम्हारे भाई के बेटे की मृत्यु हो जाती है तो तुम्हें कैसा लगेगा ? मुझे बहुत दुख होगा पर उतना नहीं जितना मेरे बेटे की मृत्यु पर मुझे दुख होगा। बुद्ध फिर पूछते है कि अगर तुम्हारे पड़ोसी के बेटे की मौत हो जाए तो तुम्हें कैसा लगेगा ? जवान कहता है, मुझे पड़ोसी के बेटे के मरने पर भी दुख होगा लेकिन उतना नहीं जितना मेरे भाई के बेटे की मृत्यु पर दुख होगा । बुद्ध फिर पूछते है, अगर उस इंसान के बेटे की मृत्यु हो जाए जिसे तुम जानते भी नहीं हो तो तुम्हें कितना दुख होगा ? इस पर नौजवान कहता है कि मुझे कोई दुख नहीं होगा क्योंकि मैं उसे जानता ही नहीं।
अब बुद्ध ने उस नौजवान से कहा कि अब तुम बताओ कि हमारा दुख किस बात पर निर्भर करता है। कुछ देर सोचने के बाद उस आदमी ने कहा कि हम कितने दुखी होंगे यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम उस चीज से कितना जुड़े हैं, हम उससे कितना लगाव महसूस करते हैं और किस हद तक उसे अपना अपना समझते हैं। बुद्ध ने कहा, बहुत अच्छा। फिर उन्होनें पूछा -जब तुम अपने बेटे को लेकर समुद्र के किनारे जाओगे तो वह समुद्र के पास पड़ी रेत से नहीं खेलेगा ? वह आदमी बोला, वह अवश्य खेलेगा।
बुद्ध ने फिर पूछा ,अगर समुद्र से आने वाली लहरें तुम्हारे बेटे के द्वारा बनाए गए घरों को तोड़ देगी तो क्या वह रोएगा नहीं ? तो आदमी ने कहा वह बिल्कुल रोएगा। बुद्ध ने पूछा क्या तुम भी उसके साथ रोओगे ? आदमी ने कहा, नहीं मैं नहीं रोऊंगा। बुद्ध ने पूछा, तुम क्यों नहीं रोओगे ? आदमी ने कहा, बच्चा रोएगा क्योंकि उसे लगता है कि वह रेत का घर हमेशा वही बना रहेगा इसलिए वह उसके साथ जुड़ाव महसूस करता है। बच्चे की भावनाएं उस घर के साथ जुड़ जाती है जबकि मैं जानता हूँ कि वह रेत का घर स्थाई नहीं है तथा वह वहाँ ज्यादा समय तक नहीं रहने वाला। इसलिए जब वह समुद्री लहरों से टूटेगा तो मुझे दुख नहीं होगा।
अब बुद्ध मुस्कुराए और कहा-अब तुम समझ गए होंगे कि किसी चीज से अत्यधिक जुड़ाव ही दुखों का कारण है। अगर तुम इस ब्रह्मांड के सत्य को जानने का प्रयास नहीं करते हो तो तुम बस यूं ही चले जाओगे। तब तुममे और रेत के घर टूटने से दुखी होने वाले बच्चों में कोई फर्क नहीं रह जाएगा।
किशोरी रमण
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Aarti Sundar.....
Very nice...
बहुत सुंदर कहानी ।