
एक दिन तथागत बुद्ध अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थे कि तभी एक शिष्य उठकर बोला, भन्ते, क्या दुख का निवारण किया जा सकता है ? बुद्ध बोले –यह सत्य है कि हर दुख का निवारण किया जा सकता है। इसी संदर्भ में मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूं। एक सेठ के पास एक नौकर था जो उसके पास लंबे समय से रहकर उसकी सेवा कर रहा था। वह साफ सफाई का पूरा ध्यान रखता था इसलिए सेठ जी उससे बहुत प्रसन्न रहते थे। एक दिन शाम को जब सेठ जी आए तो देखा कि उनका कीमती और नक्कासी-युक्त फूलदान टूटा पड़ा है। उन्होंने नौकर को बुलाकर पूछा कि यह फूलदान कैसे टूट गया ? नौकर ने कहा मालिक मैं सफाई कर रहा था कि फूलदान हाथ से छूट गया और टूट गया। गलती मेरी है, आप मुझे क्षमा करें। सेठ जी तेज आवाज में बोले क्षमा मांगने से क्या होता है ? फूलदान बरसों से कमरे में था और इसी से कमरे की शोभा थी। यह तुम्हें पता है कि यह फूलदान मुझे कितना प्यारा था। डांटने के अलावा सेठ जी और कर भी क्या सकते थे ? बहुत भरोसे का नौकर जो था।
उस रात सेठ जी को बिल्कुल भी नींद नहीं आई। वे बस बार-बार करवटें बदल रहे थे। बार-बार फूलदान टूटने की बात मन में आ रही थी। जब नींद नहीं आई तो वे बिस्तर से उठकर कमरे में टहलने लगे तभी उनकी नजर नौकर पर पड़ी जो खर्राटे ले रहा था। उन्हें बड़ा दुख हुआ। सोचा, इसे मालिक के नुकसान का जरा भी दुख नहीं है। नौकर को इतनी शांति के साथ सोता देखकर सेठ जी को बड़ा गुस्सा आया।
अगले दिन उन्होंने एक प्रयोग करने की सोची। दूसरे दिन जब नौकर ने अपना सारा काम खत्म कर लिया तो शाम को सेठ जी ने उसे बड़े प्यार से बुलाया और कहा। देखो, कल नुकसान हो गया था इसलिए मैं गुस्से में था। इसी से मैंने तुम्हें डांट दिया था। पर यह तो कल की बात थी। आज मैं बहुत प्रसन्न हूं। तुम मेरे साथ इतने दिन से हो और इतना अच्छा काम कर रहे हो। कल ही मेरे मन में आया था कि मुझे तुम्हें सेवा के लिए कुछ इनाम देना चाहिए। सोचता हूं कि क्यों ना यह फूलदान ही तुम्हें दे दी जाए ? पर क्या करें, यह तो तुम्हारे हाथ से टूट गया है। यदि नहीं टूटा होता तो आज तुम्हारा होता। यह कह कर सेठ तो उस रात बड़े आनंद से सोया पर नौकर सारी रात करवटें बदलता रहा। उसके मन में एक ही बात आ रही थी कि अगर फूलदान नहीं टूटता तो आज मेरा होता।
कथा सुनाकर बुद्ध बोले, अब शायद तुम समझ चुके होंगे कि लोभ दुख का सबसे बड़ा कारण होता है। इसे त्याग कर ही हर दुख से मुक्ति पाई जा सकती है। जब तक उस फूलदान का संबंध सेठ के साथ जुड़ा हुआ था तब उसके टूटने का दुख सेठ को ही हुआ क्योंकि सेठ के मन में उस फूलदान को लेकर लालच और लोभ था। लेकिन जैसे ही उस फूलदान का संबंध उस सेठ से हटकर उस नौकर के साथ जुड़ गया, उस नौकर के मन में उस फूलदान को लेकर लालच पैदा हो गया और उस फूलदान के टूटने का दुख अब उस सेठ से हट कर नौकर को होने लगा।
किशोरी रमण
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सुन्दर कथा।-- सीख लालच और लगाव ही दुख का कारण है।
Bahut hi Sundar kahani.......