एक आदमी अपनी जिंदगी में बहुत परेशान रहता था। जब उसे अपनी परेशानियों से निकलने के उपाय समझ मे नही आये तो उसने मौत को गले लगाने का निश्चय किया। इसके लिए वह जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल मे बहुत दूर जाने के बाद उसने एक तेज कांति वाले इंसान को देखा। उनके चेहरे पर बहुत ही निर्मल भाव दिख रहे थे। वह और कोई नहीं बल्कि महात्मा बुद्ध थे।
तभी महात्मा बुद्ध की नजर उस व्यक्ति पर पड़ी तो उन्होंने उस व्यक्ति से पूछा कि हे मानव तुम्हे क्या परेशानी है ? और तुम जंगल में क्यो भटक रहे हो ?
इस पर उस व्यक्ति ने अपने जीवन की पूरी व्यथा भगवान बुद्ध को बताई और कहा कि वह बहुत दुखी है। वह बुद्ध से पूछता है कि आखिर उसके ही जीवन में इतना दुख क्यों हैं ? वह ये भी कहता है कि अब वह जीना नहीं चाहता इसलिए वह मरने के लिए जा रहा है।
इतना सुनने के बाद भगवान बुद्ध ने उससे कहा कि हे मानव तुम बताओ कि तुम्हें कौन सा दुख है ? आखिर मैं भी तो जानू कि तुम्हें किस परेशानी ने जकड़ रखा है और तुम जीना क्यों नहीं चाहते ? इतना सुनकर उस व्यक्ति ने बुद्ध से कहा कि हे प्रभु अब मैं आपसे कितने दुख बताऊं ? मेरी तो पूरी की पूरी जिंदगी दुखों से भरी है। जो भी मेरे रिश्तो में हैं उनसे मैं खुश नहीं हूँ। और मेरे शरीर में भी अनगिनत बीमारियाँ हो गई है। एक के बाद एक दुख लगा ही रहता है। ना तो मैं अपने रिश्तो से खुश हूँ, ना तो परिवार से। न तो अपने मन से खुश हूँ न तो अपनी जिंदगी से। अब तो मुझे लगता है कि ऐसी जिंदगी से मैं मर जाऊँ तो ज्यादा अच्छा है। अब तो मेरे लिए जीने का कोई मतलब ही नही है।
महात्मा बुद्ध ने उस व्यक्ति से कहा- ये मानव, तुम जरा गहराई से सोचो और विचार करो कि आखिर तुम्हारे दुखो का क्या कारण हो सकता है ? उस व्यक्ति ने बहुत सोचा, पर उसे कुछ समझ में नहीं आया कि उसके दुखों का कारण क्या है ? तब बुद्ध ने उसे उत्तर दिया कि तुम्हारे दुखों का कारण तुम स्वयं ही हो। अब वह व्यक्ति बहुत आश्चर्य में पड़ गया कि मैं स्वयं अपने दुख का कारण कैसे हो सकता हूँ ? तो बुद्ध ने उसे उत्तर दिया कि हे मानव तुम इस संसार में मोह माया रुपी एक बंधन में फँस गए हो। इस मन के मोह से तुम निकल नहीं पा रहे हो और यही तुम्हारे सभी दुखों का कारण बन गया है।
अब उस व्यक्ति ने बुद्ध से कहा कि हे प्रभु, मैं समझा नहीं। यह मन का मोह क्या है ? और यह मेरे दुखों का कारण कैसे हो सकता है ? तो गौतम बुद्ध ने उसे दो कहानियाँ सुनाई जो इस प्रकार है।
जिस प्रकार एक मकड़ी पूरा दिन जाला बुनती रहती है और एक दिन ऐसा आता है कि वह स्वयं ही उस जाले में फँस जाती है। वह बहुत चाह कर भी उससे बाहर नहीं निकल पाती। इसी प्रकार तुमने भी अपनी जिंदगी में इतने सारे रिश्ते बनाए, कितनों से मोह किया, उन्हें अपना सब कुछ माना। और आज वही लोग तुम्हें दुख दे रहे हैं। हमें दुख तभी होता है जब हमारे अपने ही हमें दुख पहुँचाते हैं और हमारे साथ कुछ गलत करते हैं।
फिर महात्मा बुद्ध ने कहा- अब मैं तुम्हें दूसरी कहानी सुनाता हूँ। और उन्होंने सुनाना शुरू किया। एक व्यक्ति ने एक पेड़ को अपने दोनों हाथों से जोरो से पकड़ रखा था।वह जोर-जोर से चिल्ला रहा था कि कोई मेरी मदद करो, मुझे बचाओ। इस पेड़ ने मुझे जोरों से पकड़ रखा है। यह मुझे मार डालेगा। तभी उस रास्ते से एक गुरु और शिष्य गुजरे। शिष्य ने यह दृश्य देखकर अपने गुरु से कहा कि हे गुरुदेव हमे इस आदमी की मदद करनी चाहिए क्योंकि वह पेड़ से बहुत बुरी तरह से चिपक गया है। उसके पास बचाव का कोई साधन नहीं है। इसपर गुरु ने अपने शिष्य से कहा कि मेरे प्यारे शिष्य, इस आदमी की कोई भी मदद नहीं कर सकता ।
शिष्य को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला हे गुरुदेव, ऐसा क्या है कि कोई इसकी मदद नहीं कर सकता ? तो उसके गुरुजी ने कहा कि इस व्यक्ति ने खुद ही तो पेड़ को पकड़ रखा है। और यह तो एक बहुत बड़ी मूर्खता है। जिस आदमी ने स्वयं ही किसी चीज को पकड़ रखा हो तो उसे भला कौन छुड़ा सकता है ?
अब महात्मा बुद्ध ने उस व्यक्ति से कहा- ऐसे ही उस पेड़ को पकड़ रखने वाले व्यक्ति की तरह तुम भी तो हो। तुमने इतने सारे दुखों को स्वयं भी तो पकड़ रखा है कि वह मेरा है, उसे मेरे पास होना चाहिए। वह मुझसे दूर ना हो जाए, मुझसे छूट न जाए। बस यही तो तेरे सारे दुखों का कारण है। जिस प्रकार से तुमने अपने जीवन में नाना प्रकार के रिश्ते बनाए, उनका भरपूर आनंद लिया और आज वही रिश्ते तुम्हें दुख पहुँचा रहे हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने स्वास्थ्य की परवाह ना करें तो आगे चलकर उसका शरीर खराब हो जाता है। नाना प्रकार के रोगों का उसके शरीर में वास हो जाता है। उसी प्रकार जब मनुष्य इस संसार में बहुत सारी इच्छाएं रखने लगता है तो उसके मन में लोभ का वास हो जाता है। चाहे उसे कितना भी धन मिले उसका मन नहीं भरता है और जब लालच के कारण उसे तृप्ति नहीं मिलती है तो उसके मन में दुख का वास हो जाता है ।
अब उस व्यक्ति को एहसास हुआ कि महात्मा बुद्ध बिल्कुल सही कह रहे हैं। मेरे सारे दुखों का कारण तो मैं खुद ही हूँ। मेरे सारे के सारे दुख मेरी वजह से, मेरे मन के मोह के कारण पैदा हुए हैं। तब उस व्यक्ति ने बुद्ध से दूसरा प्रश्न किया- हे प्रभु, आपने मुझे मेरे दुखों का कारण तो बता दिया। अब आप मुझे इसे दूर करने का उपाय भी बताएं। तब महात्मा बुद्ध ने कहा, अगर तुम सारे के सारे दुखों से पार होना चाहते हो तो अपने मन के मोह का त्याग कर दो। उसमें प्रेम और संतोष भर दो। क्योंकि जिस हृदय में प्रेम और संतोष का दीपक जल जाय तो उसके मन के मोह से उपजी सारी वासनाएँ, लोभ, अहंकार इत्यादि का नाश हो जाता है।
अंत में एक बात कहना चाहता हूँ कि वैसे तो ये सारी बाते कहने में बहुत आसान है लेकिन उस पर अमल करना बहुत ही मुश्किल । लेकिन जो व्यक्ति महात्मा बुद्ध के उपदेश को समझ गया वह अपने सारे दुखों से पार पा जाता है।
किशोरी रमण
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Very very nice👍...
वाह, बहुत सही उपदेश।