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  • Writer's pictureKishori Raman

"नवरात्र पर्व का संकल्प"


अभी नवरात्र का पर्व चल रहा है। इस पर्व में हम सब माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा आराधना करते हैं तथा उनकी महिमा का गान पूरी श्रद्धा और निष्ठा से करते है। असल मे यह सम्पूर्ण पर्व ही मातृ-शक्ति की पूजा का पर्व है। हाँ, हमारे समाज मे जहाँ साल में दो बार लड़कियों को महत्व देने के लिए ऐसे पर्व मनाये जाते हैं वहाँ लड़कियों को दोयम दर्जे का मानने वाले भी कम नही हैं। हमारे समाज मे नारी की स्थिति प्राचीन काल से ही अच्छी नही है। घर हो या बाहर उसे किसी न किसी रूप में शोषण का शिकार होना पड़ता है। चाहे वह भूर्ण-हत्या की प्रबृत्ति हो या समाज मे महिलाओं के प्रति लगातार बढ़ते अपराध, हर कहीँ स्थिति सोचनीय दिखाई पड़ती है। हालाँकि नारी के वीर गाथाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। तो हम इसे क्या कहेंगे ? एक तरफ नारी शक्ति की पूजा तो दूसरी तरफ उसी शक्तिरूपा माँ, बहन,पत्नी और बेटी का तिरस्कार औऱ उपेक्षा। उन्हें न तो हम वाजिब हक देने को तैयार है और न ही उचित स्थान और सम्मान। तो फिर हमारे इस पाखंड का मतलब क्या है ? एक नाटक ?या फिर आधे अधूरे मन से किया जा रहा कोई सार्थक प्रयास ? हालाँकि ये बहस का विषय हो सकता है। पर एक बात तो तय है कि जब हमारा देश आजाद हुआ था तब और आज जब हम आजादी का अमृत-महोत्सव एवं पचहत्तरवीं सालगिरह मना रहें हैं तब, इन दोनों स्थितियों का तुलनात्मक अध्ययन करें तो हम पाते है कि बेशक नारियों की स्थिति में बदलाव आया है। यह बदलाव नजर भी आता है। तब भी इसे मुक्कमल मान कर अपनी पीठ थपथपाने और गर्व से सीना चौड़ा कर हम ये घोषणा करने की स्थिति में नही हैं कि हमने नारियों के लिए वो आदर्श समाज बना दिया है जिसका जिक्र हमारे धर्म ग्रंथों मे किया गया है यानी जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता बसते हैं। आज भी वह समय नहीं आया है। आज भी बेटे और बेटियों के बीच का भेदभाव नहीं रुका है। आज भी देश के अधिकाँश जगहों पर बेटियों को न तो पढ़ने-लिखने और न ही अपनी मर्जी से कुछ करने, अपना कैरियर बनाने या अपना जीवनसाथी चुनने की आजादी है। हाँ, इसके छिटपुट अपवाद हो सकते हैं। आज नारी, जीवन के हर क्षेत्र में आगे आ रही है, ऊँचे मकाम हासिल कर रही है पर साथ ही उसे बाहर के अलावा घर की सारी जिम्मेदारियाँ भी निभानी पड़ रही है। घर और बाहर के दो पाटों में वह पिसी जा रही है। समय की बदलती धारा के साथ महिलाएँ अपने प्रयासों में पीछे नहीं है। बस आवश्यकता है उन्हें सही अवसर प्रदान करने की। किसी भी देश का भविष्य उसकी आधी आबादी यानी नारी पर ही टिका होता है। क्योंकि एक माँ ही अपने बच्चे का पालन पोषण करती हैं, उन्हें संस्कारवान एवं शिक्षित बनाती है फिर वही बच्चे देश के कर्णधार बनते हैं। ऐसे में समझा जा सकता है की एक नारी की भूमिका राष्ट्र निर्माण में कितना महत्वपूर्ण है। आज नवरात्र पर्व मनाने और कन्या पूजन करने का औचित्य भी तभी है जब हम नारी के गुणों का सही रूप में सम्मान करें और उसे दोयम दर्जे का न समझ कर उसके गुणों को महत्व दें तथा उसे आगे बढ़ने के लिए हर संभव अवसर प्रदान करें। इस नवरात्र पर्व पर हम संकल्प लें कि नारी के प्रति सम्मान रखने के लिए हम अपने घर परिवार से ही इसकी शुरुआत करेंगे। निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि कन्याओं और महिलाओं का सम्मान ही माता की सच्ची उपासना है। बेटियों को बचाना और आगे बढ़ाना ही स्त्री शक्ति की पूजा है। किशोरी रमण BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE If you enjoyed this post, please like , follow,share and comments. Please follow the blog on social media.link are on contact us page. www.merirachnaye.com

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