आज 20 दिसंबर है, निष्काम कर्मयोगी और संत गाडगे बाबा की पुण्य तिथि। इस अवसर पर उनको कोटि कोटि नमन एवं श्रद्धांजलि।
गाडगे बाबा का जन्म 23 फरवरी 1876 में, महाराष्ट्र के अमरावती जिले के शेणगाँवअंजनगाँव में हुआ था। उनके बचपन का नाम डेबू जी झिंगराजी जनोरकर था। पिता की मौत के बाद उनका बचपन नाना के यहाँ बिता जहाँ उन्हें गायों को चराने एवं खेती का काम करना पड़ता था। सन 1905 से लेकर सन 1917 तक वे अज्ञातवास में रह कर अपना समय तपस्या और ज्ञान अर्जन में लगाया। उस समय समाज मे अंधविश्वासों, रूढ़ियों एवं आडम्बर का बोल बाला था। सामाजिक कुरीतियों एवं दुर्व्यसनों से सारा समाज त्रस्त था।
संत गाडगे बाबा ने अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य बनाया- लोकसेवा। दिन-दुखियों तथा उपेक्षितओं की सेवा को ही वे ईश्वर भक्ति मानते थे। धार्मिक आडम्बरों का उन्होंने प्रखर विरोध किया। उनका विश्वास था कि ईश्वर न तो तीर्थ स्थानों में बसते हैं और न ही मंदिरों और मूर्तियों में। दरिद्रनारायण के रूप में ईश्वर मानव समाज मे विधमान हैं। मनुष्य को चाहिए कि वह इस भगवान को पहचाने और उनकी तन मन धन से सेवा करे। भूखों को भोजन, प्यासे को पानी, अनपढ़ को शिक्षा, बेकार को काम, निराश को ढांढ़स ही भगवान की सच्ची सेवा है।
धर्म के नाम पर होने वाली पशु बलि के वे सख्त विरोधी थे। नशाखोरी, छुआछूत जैसी सामाजिक बुराईयों तथा मजदूरों और किसानों के शोषण के भी वे खिलाफ थे। संत महात्माओं के चरण छूने की प्रथा जो आज भी प्रचलित है, संत गाडगे उसके भी विरोधी थे।
उन्होंने महाराष्ट्र के कोने कोने में अनेक धर्मशालाएँ, गौशालाएँ, विद्यालय, चिकित्सालय तथा छात्रावासों का निर्माण कराया। यह सब उन्होंने भीख माँग कर बनवाया किन्तु अपने लिए एक कुटिया तक नही बनवाया। उन्होंने धर्मशालाओं के बरामदे या आस पास के किसी बृक्ष के नीचे ही अपनी सारी ज़िन्दगी गुजर दी। एक लकड़ी की छड़ी, एक फटी पुरानी चादर और मिट्टी का एक बर्तन जो खाने, पिने और कीर्तन के समय ढपली का काम करता था, यही उनकी सम्पत्ति थी। वैसे तो बाबा अनपढ़ थे पर बड़े बुद्धिमान थे।
संत गाडगे जी द्वारा स्थापित गाडगे महाराज मिशन आज भी समाज सेवा में रत है। प्रत्येक वर्ष शिविर लगा कर अपाहिजों का ईलाज तथा कम्बल, कपड़े, बर्तन का वितरण किया जाता है। उन्होंने तीर्थस्थलों पर बड़ी बड़ी धर्मशालाएँ बनवाई जिसमें गरीब यात्रियों को मुफ्त में ठहरने की ब्यवस्था है। नासिक में उनके द्वारा बनवाई गई विशाल धर्मशाला में पाँच सौ यात्रियों के एक साथ ठहरने की ब्यवस्था है जिसमे यात्रियों को मुफ्त में चूल्हा और बर्तन दिया जाता है।
मानवता के महान उपासक गाडगे बाबा 20 दिसंबर 1956 को ब्रह्मलीन हो गए। प्रसिद्ध संत तुकडोजी महाराज ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर अपनी एक पुस्तक की भूमिका में उन्हें मानवता के मूर्तिमान आदर्श के रूप में निरूपित कर उनकी बंदना की है। उन्होंने कहा कि गाडगे बाबा ने बुद्ध की तरह ही अपना घर परिवार छोड़ कर मानव कल्याण के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।
आइए, हम उनके पुण्य तिथि पर उन्हें नमन करें और प्रण लें कि समाज से छुआछूत, जातिपाँति एवं अंधविश्वासों का समूल नाश करेंगे। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
किशोरी रमण
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गाडगे बाबा को शत शत नमन।
Bahut hi sundar.