भीड़ का हिस्सा बन यहां तमाशा देखते है लोग
किसी के साथ कुछ भी हो चुप रहते हैं लोग
अन्याय और शोषण देख उन्हे चिंता नही होती
उनके साथ ऐसा नहीं होगा यही समझते हैं लोग
कुछ लोग यहां पर जाति धर्म का जहर फैलाते हैं
ये धंधा है उनका इसी से वे सता सुख पाते हैं
लड़ाते हैं हम सबकोऔर हम पर शासन करते है
उनके बच्चे कलमऔर हम उनका झंडा उठाते हैं
आज औरो के साथ तो कल तुम्हारे साथ होगा
जब लगेगी आग तो बस्ती का हर घर राख होगा
आग लगाने की नही इसे बुझाने की बात सोंचो
प्रेम और करुणा से ही इस घृणा का नाश होगा
सदियों से होते आ रहे जुल्मों को क्या याद करेंगे
हम उनकी बराबरी में बैठे क्या ये बरदास्त करेंगे
क्या छोड़ देंगे हमारे पुरखोंको खलनायक बताना
अतीतकी ज्यादतियों केलिए क्या पश्चाताप करेंगे
किशोरी रमण
आप सब खुश रहें, स्वस्थ रहें और मस्त रहें
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बहुत सुंदर रचना।