एक वह भी समय था जब इंसान जंगलों में रहता था और फल फूल, कंद मूल और शिकार कर के पेट भरता था। उसके पास तब कल के लिए सहेजने को कुछ नही होता था। फिर भी तब का मनुष्य आज की तुलना में ज्यादा सुखी था। जबकि आज के मनुष्य के पास सबकुछ है फिर भी वह परेशान, दुखी और निराश है।
अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है ?
तो जवाब है कि, आज उसमें संतोष नही है। अगर संतोष न हो तो चाहे दुनिया की सारी चीजें क्यो न मिल जाय वह और ज्यादा पाने की लालसा में परेशान ही रहेगा।
खुशी आखिर है क्या ?
यह इंसान की एक मानसिक अवस्था है, जो संतोष, दया और करुणा से उत्पन्न होता है। केवल अपने लिए ही नहीं बल्कि दूसरे मनुष्यों, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों, प्रकृति सबकी चिन्ता करना,सबके लिए स्नेह और सदभाव रखना हमे खुशी और सन्तुष्टि प्रदान करता है।
हमे आज जो भी मिला है उसका भी उचित उपभोग न कर हम कल की चिंता में डूबे रहते हैं। कल के लिए इकट्ठा करने हेतू हम तमाम तरह के पाप करते हैं, दूसरों को दुख पहुचाते हैं और खुद भी दुखी रहते है। तमाम भौतिक सुख-सुविधा उपलब्ध रहने के बाबजूद भी हम सुखी नही हैं। ऐसा इसलिए कि भौतिक सुख सुविधा से मानसिक शान्ति नही खरीदी जा सकती। शान्ति तो त्याग, संतोष और संतुष्टि से ही आती है।
यहाँ पैगम्बर मोहम्मद के जीवन से संबंधित एक प्रेरक प्रसंग का जिक्र करना चाहूँगा।
पैगम्बर मोहम्मद साहब से मिलने हर रोज बहुत से लोग आया करते थे। उनसे जो लोग मिलने आते थे वे कुछ न कुछ भेंट,मिठाईयां दे जाते थे। कभी कभी मुद्राएँ या अन्य उपहार भी होता था। जो लोग भी वहाँ आते ,इन चीजों को मोहम्मद साहब उनमें ही बाँट देते। शाम तक उनके पास कुछ भी नही बचता और वे फिर से फ़क़ीर हो जाते।
जब पत्नी पुछती की कल के लिए कुछ बचाना उचित न होगा ? तब मोहम्मद साहब कहते, कल की चिंता क्यो करें ? जो आज दे गया, कल भी दे जाएगा। कल का इंतजाम नास्तिकता है, अश्रद्धा है। आदमी भला कितना इंतजाम कर पायेगा और उसके इंतजाम कहाँ तक काम आयेगेँ।
एक दिन मोहम्मद साहब बीमार पड़ गए, तो पत्नी ने सोंचा आज तो कुछ बचा ही लेना चाहिए। शाम को जब सब कुछ बाटा जा रहा था तो उन्होंने पाँच दीनार तकिये के नीचे छुपा दिया।
रात में सोते समय मोहम्मद साहब बड़ी पीड़ा में थे। उन्होंने पत्नी से कहा- लगता है गरीब मोहम्मद आज गरीब नही है। घर मे जरूर कुछ बच गया है। उनकी पत्नी बहुत घबरा गई। उन्होंने पूछा- आपको कैसे पता ? मोहम्मद साहब बोले, आज तुम वैसी निश्चिन्त नही हो जैसे तुम रोज हुआ करती हो। जो चिंतित है वही बचाते है और जो बचाते हैं वही चिंतित रहते हैं। उसे बाहर निकालो और बाँट दो। कहीं ऐसा न हो कि परमात्मा कहे कि मोहम्मद भी चूक गया और मुझे उनके सामने अपराधी की तरह खड़ा होना पड़े।
उनकी पत्नी घबरा कर पांचों दीनार ले आयी। मोहम्मद साहब ने कहा- किसी को पुकारो। पुकार सुनकर आधी रात को भी एक भिखारी सड़क से उठकर दरबाजे पर आ गया। मोहम्मद साहब ने पत्नी से कहा, जब आधी रात को भी लेने वाला आ सकता है तो देने वाला भी आ सकता है। बस उनमें अपनी श्रद्धा बनाये रखो।
पत्नी ने पांचों दीनार उस भिखारी को दे दिए। मोहम्मद साहब बोले- अब मैं शान्ति से सो सकता हूँ, और वे चादर ओढ़ कर सो गए।
किशोरी रमण
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Bahut hi sundar.
वाह, बहुत सुंदर और प्रेरणादायक प्रसंग।