(कबीर जयंती पर आलेख)
बहुजन परंपरा के संतों में भगवान बुद्ध के बाद जन -मानस को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले संतो में संत कबीर का स्थान अग्रणी है।
धार्मिक पाखंडवाद के खिलाफ अपनी लेखनी से क्रांति लाने वाले संत कबीरदास की वाणी आज भी जातिवाद और भेदभाव का न सिर्फ मुख़ालफ़त करती है बल्कि हमे अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने की प्रेरणा भी देती है। उनके दोहे हमे तर्क और विज्ञान को तरज़ीह देने की नसीहत भी देते हैं। लोगो के गलत सोंच और उनके साम्प्रदायिक मानसिकता को उजागर करते हुए हमें उनसे बचने की सलाह भी देते हैं।
उनका जन्म आज से करीब छह सौ साल पहले सन 1398 ईस्वी में ( लगभग) जेष्ठ पूर्णिमा के दिन लहरतारा ताल काशी में हुआ था। वे अनाथ थे जिसे नीमा और नीरू नामक जुलाहे दंपति ने पाला था। उनकी मृत्यु को लेकर भी विवाद है। कुछ का मानना है कि उनकी मृत्यु सन 1518 ईस्वी के आसपास मगहर में हुई थी।
कबीर के मत को मानने वाले कवीरपंथ सम्प्रदाय के अनुयायी कहलाते है। वे एक दूसरे को साहब कह के संबोधित करते हैं। आडम्बरो और कर्मकांडों के सख्त विरोधी कबीरदास ने ताउम्र सादाऔर कर्म प्रधान जीवन ब्यतीत किया। उन्होंने समाज मे ब्याप्त जातिवाद, धार्मिक कट्टरता तथा अंधविश्वास को दूर करने के लिए साखिओ(दोहे) का सहारा लिया। उन्होंने अपने दोहे के माध्यम से धर्म का असली मर्म और जीवन की सच्चाई लोगो को बताई।
आज के इस दौर में जब धन, धर्म एवं सत्ता का अहंकार प्रेम, करुणा,सेवा और सहिष्णुता पर हॉबी होता जा रहा है,समाज मे पाखंड और अंधविश्वास फिर से बढ़ने लगा है तब कबीरदास की शिक्षाये हमारे समाज मे अमन ला सकती है और हमारे भविष्य को सुरक्षित बना सकती है।
यहाँ प्रस्तुत है उनके कुछ दोहे जो जिंदगी की सच्चाई बयां करती है और जिन्हें सुन कर आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है।
1.बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय
2. जाति न पूछो साधु की, पूछ लिजिये ज्ञान
मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान
3. पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ,पंडित भया न कोय
ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय
4. धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय
माली सीचें सौ घड़ा ऋतु आये फल होय
5. पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहाड़
घर की चाकी कोउ न पूजे जाको पीस खाय संसार
6. हिंदू कहे मोहि राम पियारा तुर्क कहे रहमान
आपस मे दोउ लड़ मुए, मरम न कोउ जान
7. मल मल धोए शरीर को धोया न मन का मैल
नहाये गंगा गोमती रहे बैल के बैल
8. कबीरा रहे ये जग अंधा, अन्धी जैसी गाय
बछड़ा था सो मर गया झूठी चाम चटायें
9. निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय
बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय
10.साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय
सार सार को गही रहे थोथा देय उडाय
जयन्ती पर संत कबीर को शत शत नमन।
किशोरी रमण
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Bahut hi sundar....
वाह, बहुत अच्छी जानकारी।