एक बार की बात है कि भगवान बुद्ध एक मार्ग से गुजर रहे थे। उस मार्ग के किनारे में ही एक नदी बह रही थी। वे देखते हैं कि एक व्यक्ति नदी में बार-बार डुबकी लगा रहा है और ठंड से कांप रहा है। बुद्ध उस व्यक्ति को देखकर बहुत आश्चर्यचकित होते हैं क्योंकि वह व्यक्ति बार-बार नदी में डुबकी लगाता है और कुछ जाप कर रहा होता है। बुद्ध उसकी ओर बढ़ते हैं और वह व्यक्ति नदी से डुबकी लगा कर बाहर आ रहा होता है।जैसे ही वह व्यक्ति नदी के बाहर आता है कि उसका पैर एक मेंढक पर पड़ जाता है और वह व्यक्ति कहता है कि राम-राम, अब मुझे दोबारा नहाना होगा और एक सौ आठ बार डुबकी लगाना होगा। वह व्यक्ति दोबारा नहाने जाता है और एक सौ आठ बार डुबकी लगाने के लिए तैयार होता है। बुद्ध उसको देखकर मुस्कुराते हैं और कहते हैं कि भन्ते रुको। तुम यह क्या कर रहे हो ? वह व्यक्ति कहता है कि मुनिवर, अभी मैं एक सौ आठ बार डुबकी लगाकर हटा ही था कि कमबख्त एक मेंढक मेरे पैरों के नीचे आ गया। अब मुझे एक बार फिर से एक सौ आठ बार डुबकी लगानी पड़ेगी। बुद्ध बोले- तुम एक सौ आठ बार डुबकी लगा लेना पर क्या तुम उससे पहले मेरी एक बात सुन सकते हो ? वह कहता है कि बोलिए मुनिवर, मैं आपकी बात अवश्य सुनूँगा। वह व्यक्ति नदी से बाहर आ जाता है और ठंड से कांपता रहता है। बुद्ध उसे अपना वस्त्र उढ़ाते हैं और पूछते हैं कि इतनी सर्दी में यह तुम क्या कर रहे हो ?
इस पर वह व्यक्ति कहता है कि मैं एक तप कर रहा हूँ, लेकिन यह मेंढक है कि मेरा तप पूरा होने ही नहीं देता। बुद्ध ने कहा कि जब तुम्हें लगता है कि एक सौ आठ बार डुबकी लगा लेने से तुम्हारा तप पूरा हो जाएगा तो एक बार एक सौ आठ बार डुबकी लगाने के बाद फिर क्यों डुबकी लगाने गए थे ? वह व्यक्ति कहता है कि मैंने एक सौ आठ बार तो डुबकी लगा ली थी लेकिन यह मेंढक मेरे पैरों के नीचे आ गया। बुद्ध कहते हैं कि क्या तुम बता सकते हो कि उस मेंढक का घर कहां है ? वह व्यक्ति कहता है कि मुनिवर, वह मेंढक तो पानी में रहता है अतः पानी ही उसका घर हुआ। अब बुद्ध कहते हैं कि जब तुम एक सौ आठ बार डुबकी लगाने से तप पूरा कर सकते हो तो यह मेंढक तो हर समय पानी में ही रहता है तो इसने अपने कितने तप पूरे कर लिए होंगे ? जब तुम मानते हो कि इस जन्म में तुम स्नान करने से पवित्र हो जाते हो तो यह मेंढक तो हर समय जल में ही रहता है। तो तुम्ही बताओ कि यह कितना पवित्र होगा ? और तुम यह भी कहते हो कि इसका स्पर्श मुझे अपवित्र करता है। यह कैसे हो सकता है ?
यह सुनकर उस व्यक्ति की आँखों में आँसू आ गए। वह बुद्ध के चरणों में गिर पड़ता है और कहता है कि इतनी बड़ी बात इतने सरल शब्दों में आपने मुझे समझा दी। आप मनुष्य नहीं अवश्य कोई देव है। मैं अब तक एक भूल में जी रहा था। बुद्ध कहते हैं कि मैं कोई देव नहीं हूँ और ना ही तुमसे अलग हूँ। तुममें और मुझमें बस छोटा सा अंतर है। और वह अंतर यह है कि तुम सोए हुए हो और मैं जाग चुका हूँ। तुम भी चाहो तो जाग सकते हो और तुम ही क्यों, हर मनुष्य जाग सकता है वशर्ते कि वह जागना चाहता है।
हम भी अपने जीवन में सोए होने के कारण इस तरह की बहुत सी गलतियां करते हैं और अपने जिन्दगी को कठिन बनाते हैं। फिर अपने आप को कोसते है और अपने आप को ही गलत साबित करते हैं। हमें अपने बुद्धि और विवेक से काम लेना चाहिए और हर चीज को परख कर ही उस पर विश्वास करना चाहिए।
किशोरी रमण
BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE
If you enjoyed this post, please like , follow,share and comments.
Please follow the blog on social media.link are on contact us page.
www.merirachnaye.com
top of page
मेरी रचनाएँ
Search
Recent Posts
See All4 Kommentare
Post: Blog2_Post
bottom of page
बहुत अच्छी कहानी ।
Nice 👌
Very nice.....
बहुत अच्छी कहानी।