इस भागमभाग भरी जिन्दगी में अक्सर ही हमारा मन अशांत रहता है और तब शुरू होती है बहुत सारी परेशानियाँ। हम धन दौलत और ऐशो आराम की सारी सुबिधायें जुटा कर उसमें अपनी शान्ति को ढूढ़ने का प्रयास करते है। जब इसमे असफल रहते है तो फिर बाहर तीर्थ स्थलों, जंगलों और पहाड़ो में तलाश हेतु दर दर भटकते हैं। जबकि मन की शांति तो हमारे अंदर ही होती है। अगर हम अपने अंदर ही मन की शान्ति की तलाश करें तो वह अवश्य मिलेगा और हमारा जीवन सफल हो जाएगा। इसी से सम्बंधित एक कहानी प्रस्तुत है। यह कहानी एक राजा और एक बौद्ध भिक्षु की है। ये बौद्ध भिक्षु सबसे अलग थे। उनका नाम था बोधिधर्मा। इस कहानी की शुरुआत एक परेशान राजा से होती है। राजा अपने परेशान मन को शांत करने का बहुत प्रयास करता है पर उसका मन शांत नहीं हो पाता है। वह अपने राज्य के बड़े-बड़े विद्वानों को बुलाता है तथा उनसे अपने मन की शांति के लिए उपाय पूछता है। वह उनके बताए गए सारे उपायों को आजमाता है फिर भी उसे शांति नहीं मिलती है। एक बार उस के दरबार में एक व्यक्ति आता है और कहता है कि उसके पास उनके मन की शांति हेतु एक उपाय है। राजा यह सुनकर बहुत खुश होता है तथा कहता है कि वह अगर उनके मन को शांत कर दे तो वह उसे बहुत सारा धन देगा। वह आदमी कहता है कि मैं तो नहीं बल्कि मेरे गुरु है जो आपकी समस्या का समाधान कर सकते हैं उनका नाम है बोधिधर्मा। आप एकबार अवश्य उनसे मिले। राजा पूछता है कि वे सन्यासी मुझे कहाँ मिलेंगें ? इस पर वह व्यक्ति बताता है कि यहाँ से थोड़ी दूर जंगल मे एक कुटिया है जिसमे वे सन्यासी रहते है। दूसरे दिन राजा बोधिधर्मा सन्यासी के पास पहुँचता है। वह बोधिधर्मा को देखकर कहता है कि सुना है आप बहुत बड़े सन्यासी हैं और मेरी समस्या का समाधान आप ही कर सकते हैं। वह सन्यासी राजा की बातों पर कोई ध्यान नहीं देता है। राजा सोचता है कि शायद सन्यासी ने उनकी बातों को नहीं सुना है। पुनः वह सन्यासी से कहता है कि क्या आप मेरी समस्या का समाधान करेंगे ? बोधिधर्मा इस बार भी उत्तर नहीं देते हैं। राजा सोचता है कि बोधिधर्मा उसकी बातों का जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं। राजा सीधे मुद्दे की बात करता है और पूछता है कि क्या आप मेरे अशांत मन को शांत कर सकते हैं ? अब बोधिधर्मा राजा से पूछता है कि तुम्हारा मन अशांत क्यों है ? राजा कहता है कि वैसे तो मेरे पास किसी चीज की कमी नहीं है। धन- दौलत इतना है कि मुझे भी अंदाजा नहीं है कि वह कितना है। सभी सुख-सुविधाएं हैं। सभी प्रजा जनों के मन में मेरे लिए आदर है। मैंने बहुत दान-पुण्य भी किये हैं।पर एक चीज की कमी है। मेरा मन हमेशा अशान्त रहता है। अगर यह कभी कभी शांत हो भी जाता है तो पुनः कुछ समय के पश्चात अशांत हो जाता है। क्या आप मेरे मन को शांत कर सकते हैं ? मैं बड़ी आशा लेकर आपके पासआया हूँ। अब आप ही मेरी अंतिम आशा हैं। बोधिधर्मा राजा से कहता है- बिल्कुल, मैं तुम्हारे मन को शांत कर दूँगा। इस पर राजा बोधिधर्मा से पूछता है कि इसके लिए मुझे क्या करना होगा ? बोधिधर्मा मुस्कुराते हैं और कहते हैं कि कल सुबह तुम मेरे पास आना पर ध्यान रहे कि साथ में अपने अशांत मन को भी लाना। सुनकर राजा चौक जाता है और सोचता है कि यह कैसी बात कर रहे हैं ? राजा बोधिधर्मा से पुनः पूछता है कि यह आपने क्या कहा ? बोधिधर्मा कहते है कि कल अशान्त मन को अपने साथ लेकर आना। कहीं ऐसा ना हो कि तुम उसे अपने महल में ही छोड़कर यहाँ आ जाओ। राजा सोचता है कि यह कोई पागल व्यक्ति है क्या ?
पर चूँकि अब राजा के पास कोई विकल्प नहीं बचा था अतः सोचता है कि एक बार प्रयास कर ही लेना चाहिए।
अगले दिन राजा बोधिधर्मा के पास पहुँचता है और कहता है कि मैं आ गया हूँ। बोधिधर्मा कहते हैं कि तुम तो आ गए पर तुम्हारा अशान्त मन कहाँ है ? लाओ तुम उसे मुझे दे दो। मैं उसे अभी शान्त करके तुम्हें दे देता हूँ। राजा कहता है कि आप ये कैसी बातें कर रहे हैं ? आप इतने पहुँचे हुए सन्यासी होकर भी यह नहीं जानते कि मन कोई ऐसी वस्तु नहीं जिसे मैं उठा कर आपको दे दूँ। मन तो मेरे भीतर है। बोधिधर्मा उस राजा से कहते हैं कि ठीक है, तुम बैठ जाओ और आँखे बंद करके अपने भीतर उस अशान्त मन को खोजो। राजा आँखे बंद करके अपने अशान्त मन को अपने भीतर खोजने का प्रयास करता है। बहुत देर आँखे बंद करके बैठे राजा के कंधे पर बोधिधर्मा हाथ रखते हैं और कहते हैं कि अब अपनी आंखे खोलो । राजा अपनी आँखे खोलता है। बोधिधर्मा उस राजा से पूछते हैं कि क्या तुम्हारा अशान्त मन तुम्हे मिला। राजा कहता है कि नहीं। बोधिधर्मा राजा से कहते हैं कि कोई बात नहीं, अब कल प्रयास करना। आज के लिए इतनी ही खोज पर्याप्त है ।राजा अपने महल में चला जाता है। अगली सुबह राजा फिर बोधिधर्मा के पास आता है और वैसा ही करता है जैसे बोधिधर्मा ने कल बताया था।राजा बैठ जाता है और अपनी आँखे बंद कर लेता है। वह अपने अंदर अपने अशान्त मन को खोजने का प्रयास करता है। बहुत देर तक राजा ध्यान में बैठा रहता है। अंत में पुनः बोधिधर्मा उसके कंधे पर हाथ रखकर पूछते हैं, क्या तुम्हारा अशान्त मन मिला ? बड़ी शांत भाव से राजा कहते हैं- नहीं। बोधिधर्मा कहते हैं, कोई बात नहीं। आज के लिए इतना ही पर्याप्त है। अब तुम कल आना। अगले दिन फिर राजा बोधिधर्मा के पास आता है और वैसा ही करता है जैसे बोधिधर्मा ने बताया था और राजा दो दिनों से कर रहा था। वह अपनी आँखे बंद करता है और अपने अशान्त मन को खूब ढूंढने का प्रयास करता है । इस बार वोधिधर्मा उसके कंधे पर हाथ रखकर उसकी आँखे नहीं खुलवाते। राजा ध्यान में बैठा रहता है। पूरा दिन बीत जाता है। बोधिधर्मा राजा के पास ही बैठे रहते हैं। पूरी रात भी बीत जाती है और राजा अपनी आंखें बंद कर ध्यान में लीन रहता है। अगली सुबह राजा की आँखे खुलती है, और वह राजा वोधिधर्मा के चरणों में अपना सर रख देता है। वह कहता है कि मेरा अशान्त मन तो मुझे कहीं नहीं मिला पर मुझे वह शांति अवश्य मिल गई है जिसकी खोज में मैं अभी तक भटक रहा था।
किशोरी रमण
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Nice story
शान्ति तो हमारे अन्दर है,समझ की कमी हमें इसके लिए बाहर भटकने को मजबूर करती है। ओम् शांति!
:-- मोहन"मधुर"
Very nice....
बहुत सुंदर कहानी ।