तेरे होठों को सहला दे
ऐसे गीत कहाँ से लाऊ
तेरे दर्दो को दुलराये
वैसे मीत कहाँ से लाऊ
बना मुसाफिर चलते जाना जीवनका सार यही है
मैं कहता हूं दुनिया वालो मरना मेरी हार नही है
जब भी मेरे आँसू निकले
किसने ,कब ,पहचाना हैं।
धरती की छाती में छुपकर
घुट कर ही रह जाना है।
मेरे भी आँसू की कीमत समझे ये संसार नही है
मैं कहता हूं दुनिया वालो मरना मेरी हार नही है
मौत हमारा सुन्दर सपना
सपनो से मैं खेल रहा हूं
जीना क्या मत पूछो यारो
जीवन को बस झेल रहा हूं
टूटे सपने टूटी खुशियां ,मेरे लिए तो प्यार नही है
मैं कहता हूं दुनिया वालो ,मरना मेरी हार नही है
किशोरी रमण
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Very nice......
Very nice...
वाह, बहुत सुंदर कविता।
बड़ी जानदार व शानदार पर दर्द भरी रचना।
एक कवि भला अपने दर्द को कैसे छुपा सकता है? उसे तो कविता बन कर बाहर आना ही है।
:--म मोहन"मधुर"