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  • Writer's pictureKishori Raman

महा लोक पर्व छठ ( भाग--1 )

Updated: Nov 13, 2021


पिछले साल हमलोग जब अपने गाँव छठ पर्व मनाने जा रहे थे तो पटना बाई पास पूरी तरह जाम था। हम लोगों ने सोचा था कि दोपहर में गाँव पहुँच जायेगे पर रात हो गई। रात में ही हम लोगों ने निश्चय किया कि कल सुबह ही उठकर न केवल अपना दलान और बरामदा साफ करेंगें बल्कि अपनी गली को भी साफ करेंगें। सुबह सुबह उठकर हम लोगों ने झाड़ू और आवश्यक सामान उठाया और दलान में आ गए। जब दालान को साफ करके बरामदे में आए तो देखा कि बरामदा कोई साफ कर गया है। फिर हम लोग गली में आए हैं तो पाया कि गली भी कोई साफ कर गया है। हम लोग यह समझने की कोशिश कर रहे थे हमारी गली कौन साफ कर गया ? तो लोगों ने बताया कि अभी कार्तिक का महीना चल रहा है। यहाँ लोगों में ये मान्यता है कि किसी के घर दरवाजे और बाहर गली या सार्वजनिक जगहों की सफ़ाई से पुण्य की प्राप्ति होती है। तो इस तरह हमलोग पुण्य कमाने से वंचित रह गये। जब हमलोग गाँव की गलिओं से गुजर रहे थे तो साल के बाकी दिनों में गंदा रहने वाला गली, चौराहा, बथान सब साफ सुथरा था। कुछ आगे एक घर के दरबाजे पर सास और बहू में झगड़ा हो रहा था। सास बार बार अपनी बहू से यही कह रही थी कि छठी मइया का दिन है इसी लिए मैं कुछ अशुभ बोलने से बच रही हूँ। आगे बढ़ा तो चौराहे पर जयबीर सेव बेच रहा था। एक ग्राहक बोला कि तुम तौल में डंडी मार रहे हो इस पर उसने कहा कि कार्तिक महीने में मैं ऐसा पाप नही करूँगा। तो इतनी महत्ता है इस छठ पर्व का हमारे लोगों और यहाँ के जनमानस में। यही वह महीना है जब लोग निरामिष एवं सात्विक भोजन करते है। लहसुन प्याज आदी का प्रयोग कार्तिक का महीना शुरू होते ही वर्जित हो जाता है। इस महीने मांस मछली की बिक्री काफी घट जाती है। एक सर्वे में ये भी पाया गया कि बिहार में इस महीने में अपराध भी काफी घट जाते है। और ये हो भी क्यो न , आखिर यह पर्व ही है ऐसा। अक्सर ही हम लोग भगवान के बारे मे सुनते हैं कि वो हर जगह है पर उन्हें हम देख नही पाते हैं। पर हमारे सूर्य देवता एक ऐसे देवता है जिन्हें हम देख भी सकते है और महसूस भी कर सकते है। उन्ही सूर्य देवता की पूजा यानी सूर्योपासना है,बिहार का अनुपम लोक-पर्व जिसे छठ पूजा भी कहते है क्योंकि इसमें सूर्य की बहन छठी माता की भी पूजा होती है। धरती पर जब हम अपनी आंखें खोलते हैं तो सूर्य और उसके प्रकाश से ही हमारा सामना होता है। सूर्य के प्रकाश से ही सृष्टि संचालित होती है। उसकी किरणें हमें ऊर्जा देती है और हमारी काया को स्वस्थ एवं निरोग रखती है। सूर्य के प्रकाश से ही इस चराचर के सारे जीव -जंतु ,पेड़- पौधों का जीवन चक्र चलता है और इसी से दुनिया जिंदा रह पाती है। अगर हम सूर्य को एक जागृत देवता की संज्ञा देते हैं और उनकी पूजा करते है तो इसमें आश्चर्य वाली कोई बात नहीं है। हम इस पर्व के माध्यम से प्रकृति के संचालक सूर्य देवता, उनकी बहन छठी माता, उषा, प्रकृति,जल,वायु को समर्पित पूजा-अर्चना करते हैं। प्रकृति को कृतज्ञता अर्पित करने का लोक पर्व है हमारा छठ महापर्व। मगध की धरती से शुरू होकर आज यह न सिर्फ बिहार बल्कि देश और दुनिया (जहां भी बिहारी लोग रहते हैं) मैं यहां ख्याति प्राप्त कर चुका है। यह अनूठा पर्व जिस तरह वेदों में मूर्ति पूजा का विधान नहीं है उसी तरह इस पर्व त्यौहार में किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है, बल्कि जो शाश्वत सत्य है जैसे सूर्य, नदी , जल,प्रकृति उसकी पूजा होती है। यही एक ऐसी पूजा है जिसमे पंडे-पुजारी की आवश्यकता नही होती है न ही श्लोक का पाठ या कोई कर्म कांड होता है। यह पर्व इस मायने में भी अनूठा है कि इसमें कोई लिंग भेद नही है। स्त्री, पुरुष सब ब्रत करते है। इसमें जाति, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब का कोई भेद नही रहता है। सभी लोग एक साथ नदी में एक पंक्ति में खड़े होकर पहले डूबते सूर्य को और अगली सुबह उगते सूर्य को अर्घ देते हैं। डूबते हुए सूर्य की पूजा इस पर्व को बिशेष बनाती है। क्योंकि सूरज दिन भर अपना सब कुछ देकर संध्या बेला में जब डूबने को होता है तो हम उनकी कृपा के लिए उन्हें कृतज्ञता अर्पित करते है। और डूबता सूरज हमे यह भी संदेश देता है कि आज रात के बाद कल सुबह अवश्य होगा और नया सूरज निकलेगा जो इस चराचर विश्व का कल्याण करेगा। शेष--अगली कड़ी में जारी•••••• किशोरी रमण


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