हमारी ये विडम्बना है कि जो चीज हम अपने साथ नही ले जा सकते उन्हीं चीजो को पाने के लिए पागल रहते है। लेकिन अच्छे कर्म जो हमारे साथ जायेगें कि तरफ हम ध्यान ही नही देते । हमारे सारे दिन एक समान नही होते अतः सुख और दुख दोनों परिस्थितियों में अपना धैर्य और विवेक बनाये रखना है और खुद में माफ करने की आदत डालनी है। इन्ही सब भावनाओं की अभिव्यक्ति है प्रस्तुत कविता जिसका शीर्षक है........
माफ करें
खाली हाँथ आये हम सब
खाली हाँथ ही जाना है
साथ रहेंगें कर्म हमारे
सबको ये समझाना है
सब दिन रहे न एक समान
आज लाभ कल नुकसान
फिर क्यो पागल मनअपना
सोंच सोंच के है परेशान
है चार दिनों की चाँदनी
कल होगी अन्धेरी रात
समझ न आये मेरे मन को
इतनी छोटी सी बात
प्यार दोस्ती और बिश्वास
यही हमारा नारा हो
मदद करें उस भाई की
जिसने हमें पुकारा हो
आओ हम सब गले मिले
अपने मन को साफ करें
हुई गलती अगर किसी से
उसको हम सब माफ करें
किशोरी रमण
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Atti Sundar.....
बहुत सुंदर रचना। लिखते रहें ।