आज प्रस्तुत है अपने " ख़ुद " की खोज-खबर लेती ये कविता जिसका शीर्षक है••••• # मेरा क्या कसूर है ?# शायद मुझे अपनी शायरी पर गुरुर है तभी तो मेरा सुख -चैन मुझसे दूर है गर ये झकझोरती है किसी के जमीर को तो फिर भला इसमे मेरा क्या क़सूर है ? मैं तो प्रेम के फ़साने रोज लिखता हूँ सच और झूठ के पाटो में रोज पिसता हूँ आज तो सच्चाई की पूछ नही है फिर भी
मैं उसी खोटे सिक्के को रोज घिसता हूँ
दोस्तो, मुझे अपना आईना तो दिखलाना
जिन्दगी क्या है जरा मुझे भी तो बतलाना
हाँ, तुम्हारा हर इल्जाम मेरे सर आँखों पर
पर अपनी जिन्दगी के फलसफे तो समझाना
उन्हें शिकायत है, मैं अब भी खिलखिलाता हूँ
अपनी शायरी के बूते हर दर्द को झुठलाता हूँ
जो बुझाएँ हैं चिराग खुदगर्ज हवाओं ने
उन्हीं को सहेज कर मैं फिर से जलाता हूँ
किशोरी रमण
BE HAPPY....BE ACTIVE...BE FOCUSED...BE ALIVE
If you enjoyed this post, please like , follow,share and comments.
Please follow the blog on social media.link are on contact us page.
www.merirachnaye.com
Beautiful.....
वाह, बहुत सुंदर रचना।
Bahut hi Sundar....